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Thursday, August 2, 2018

जीवन का लक्ष्य - वृक्ष या पर्वत

जीवन में ऊंचाइयों को पाना किसे अच्छा नहीं लगता।  ऊंचाइयों का पैमाना सबके लिए अलग-अलग है सबकी अपनी-अपनी सोच है अपनी अपनी इच्छा शक्ति है।  वृक्ष बने या पर्वत यह हमारी अपनी सोच पर निर्भर करता है।  दोनों  का अपना अपना संघर्ष है अपनी-अपनी चुनौतियां है।
 वर्तमान में हर व्यक्ति वृक्ष बनने के लिए संघर्ष कर रहा है। कोई रोप दे, कोई  सींच दे,  बस वृक्ष का आकार ले लें  और अपनी इस उपलब्धि पर गौरवान्वित महसूस करें।  किंतु इससे व्यक्तिगत प्रगति तो मिल जाती है,  व्यक्तिगत  लक्ष्य मिल जाता है किंतु जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।  वृक्ष कभी भी  तूफानों से सामना नहीं कर सकता क्योंकि वह अपने आधार पर टिका हुआ होता है।  बिल्कुल वैसे ही जैसे एक व्यक्ति अपने सारे संबंधों का उपयोग करता हुआ एक लक्ष्य प्राप्त कर लेता है और अपने आप को समाज से अलग मानते हुए जीवन जीता है।  अक्सर ऐसे व्यक्ति जीवन में नाम तो पा लेते हैं किंतु उनका जीवन एकाकी हो जाता है स्टार डम के कारण सामान्य जनता से जुड़ने में उन्हें कठिनाई होती है।  ऐसी ऊंचाइयों किस काम की जो व्यक्ति को समाज से ही अलग कर दे।
 इससे भी अधिक संघर्षों से जूझकर धरती की प्लेटे जब टकराती हैं अंदर से ज्वार उठता है तब कहीं जाकर एक पर्वत का निर्माण शुरू होता है जो अनेक वर्षों तक चलता है।  पर्वत किसी एक व्यक्ति की स्वतंत्र उपलब्धियों का प्रतीक नहीं है।  यह तो प्रतीक है समवेत स्वर में उठते नादों का,  समाज के हर व्यक्ति के अंदर हिलोरे लेती भावनाओं के ज्वार के आकार  लेने का।  और ऊंचाइयां इतनी कि ऊंचे से ऊंचे तमाम वृक्ष भी उसके अंदर चींटी से भी छोटे लगने लगें।  इतने संघर्ष के साथ, इतनी सबल भावनाओं के साथ जब पर्वत आकार लेता है तब उसमें इतनी शक्ति आती है कि वह तूफानों को भी रोक सकता है आवारा बादलों को थाम कर उनसे प्रेम की वर्षा करा सकता है,  अनेक प्राणियों का आश्रय बनकर उन्हें जीवन दे सकता है।  पर्वत बनने के लिए व्यक्ति को अहंकार से मुक्त होना पड़ता है समाज की शक्ति पहचानी पड़ती है।
 वृक्ष में अहंकार तत्व है इसीलिए शक्तिशाली तूफानों क सामने वृक्ष को झुकना पड़ता है। पर्वत अहंकार मुक्त है बड़े-बड़े तूफानों को भी उसके सामने अपनी दिशा बदलनी पड़ती है।

-  दीपक श्रीवास्तव

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