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Wednesday, July 24, 2019

ॐ नमः शिवाय

हे आदि अंत, हे पूर्ण काम।
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।

हे सर्व व्याप्त निर्वाणरूप,
हे जड़-चेतन, हे छांव धूप।
हे गुण-अवगुण से चिर विमुक्त,
हे निर्विकल्प, हे चिर प्रयुक्त।
तुम शून्य तुम्ही हो कोटि गगन,
तुमसे तुममें यह सृष्टि मगन।
हे ज्योतिपुंज, हे सृष्टिधाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।1।।

हे मृत्युंजय, हे निराकार,
हे ज्ञानरूप, हे ओमकार।
हे प्रेममूल, हे गुणागार,
हे दिग-दिगंत, हे चिर अपार।
हे गुण-विमुक्त, हे गुण-दयाल,
हे आदि-अन्त हे महाकाल,
हे पूर्णयोग, हे सत्यकाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।2।।

हे जीवमात्र के प्राण-बिंदु,
हे गौर-वर्ण, हे शीलसिंधु।
हे धारण करते शशि अपूर्ण।
हे ध्यान मग्न हे सृष्टि पूर्ण,
हे धारण करते सर्प माल
है पावन गंगा केशभाल।
हे निर्विकार, हे ज्योति धाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।3।।

हे चिर-प्रसन्न रहने वाले,
हे कालकूट पीने वाले।
सुन्दर भौंहें, नैना विशाल,
कानन कुंडल, गल मुण्डमाल।
हे पशुपति, हे गति, हे सकर्म,
हे धारण करते व्याघ्र चर्म।
हे सुख-राशी, हे योग-नाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।4।।

हे कोटिसूर्य, हे शक्तिमूर्ति,
हे त्रिपुरवीर, हे भक्तिमूर्ति।
हे अगम-अगोचर, हे प्रचंड,
हे जन्ममुक्त, हे चिर-अखंड।
तव दिव्य हस्त में शुभ त्रिशूल,
हो जन्म-मृत्यु के तुम्ही मूल।
हे उमापती, हे कोटिनाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।5।।

हे कालमुक्त कल्याणनाम,
हे जीव-जगत के मोक्षधाम।
हे भस्मअंग, हे भूतनाथ,
है सकल सृष्टि तुमसे सनाथ।
हे लोभ-मोह से चिर-विमुक्त,
हे प्रेम-ज्ञान से सदा युक्त।
हे सोमनाथ, हे कोटिकाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।6।।

हे भव-भंजक, हे सुखराशी,
आनंदधाम, हे दुःखनाशी।
मै मूढमति ना सका जान,
घेरे मुझको दुःख-दर्द-काम।
न जप जानूं, न योग करूँ,
किस विधि मैं तेरा ध्यान धरुं।
बस एक सहारा एक नाम,
हे अविनाशी तुमको प्रणाम।।7।।

- दीपक श्रीवास्तव

Thursday, July 11, 2019

--- जल ही जीवन ---

जल ही जीवन, जल ही जीवन।
इस अमृत से चेतन तन मन॥

जल बिन रक्त नसों में कैसे?
जल बिन वायु जियेगी कैसे?
जल बिन तन में जीवन कैसे?
जल बिन वृक्ष जिएंगे कैसे?
जल बिन कैसा भादो सावन?
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥

चूर्ण मिले जल से जग खाए,
चूर्ण मिले जल से छत पाए।
जल तन की ऊष्मा पिघलाए।
जल ही मनके ताप मिटाए।
गौरव मान प्रतिष्ठा का धन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥

तीर्थ जहां पर नदियां कल कल,
पावन करती तन मन पल पल।
सूखी नदियां ताल तलैया,
सूखी वृक्षों की मृदु छैया।
फिर से इनको दे दें जीवन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥

- दीपक श्रीवास्तव