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Friday, July 31, 2020

ताकि जीवन हंसता-खेलता रहे

--- ताकि जीवन हंसता-खेलता रहे ---
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

एक तालाब के किनारे एक छोटे से पौधे ने जन्म लिया। धीरे धीरे पौधा बढ़ते हुए एक पेड़ का आकार ले रहा था। एक ऐसा भी समय आया जब उस सघन एवं फलदार पेड़ की छांव में राहगीरों को बहुत सुकून मिलता था। एक बार कहीं से वृक्ष पर एक गिलोय(अमृता) की बेल चढ़ आई तथा अपने स्वभाव के अनुरूप उसमें पेड़ के औषधीय गुण भी विकसित होने लगे। अब तो पेड़ की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी तथा लोग पेड़ पर चढ़ी गिलोय के औषधीय गुणों के लिए भी वहां आया करते। एक बार एक पक्षियों का जोड़ा आश्रय की तलाश में वहां से गुजर रहा था। पेड़ की सुंदरता देखकर पक्षी जोड़े ने वहीं अपना घोंसला बना लिया। पेड़ की खोहों में भी कुछ जीवों ने अपना घर बना लिया था। इस प्रकार पेड़ अपने-आप में एक भरा-पूरा संसार हो चुका था तथा विभिन्न लताओं, बेलों एवं जीवों की अनेक पीढ़ियां वहां पनपती एवं फलती रहीं।

एक बार पेड़ के तने पर अमरबेल की एक छोटी सी बेल लिपटती दिखाई दी। कुछ बेलें एवं जीव चाहते थे कि उसे नष्ट कर दिया जाय लेकिन सर्वसम्मति के अभाव में अमरबेल को वहां आश्रय मिल गया और उसने अपना विस्तार प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे वह शाखों एवं पत्तियों तक पहुँचने लगी तथा पेड़ के एक हिस्से को पूरी तरह ढक लिया।  अमरबेल बहुत मजबूत हो चुकी थी जिससे दूसरी बेलों एवं जीवों का वहां रहना दूभर होने लगा था। अमरबेल के जाल पर चढ़कर अनेक शिकारी जीव पक्षियों के घोंसले तक पहुँच जाते थे। पेड़ का एक हिस्सा पूरी तरह अमरबेल के चंगुल में था। दूसरे हिस्से में अब भी जीवन पनप रहा था तथा उनमे से कुछ इसी भ्रम में थे कि उनका आश्रय सदा सुरक्षित रहेगा। लेकिन भ्रम में शिकार बेलों एवं जीवों में कभी एकमत नहीं हो सका और उनका ठिकाना सिकुड़ता गया। अब बचे-खुचे सभी जीव मिलकर अमरबेल को नष्ट करना चाहते थे किन्तु अब उनमें इतना सामर्थ्य नहीं था तथा धीरे-धीरे जीव बेघर हुए, लताएं सूख गईं। अमरबेल से बुरी तरह जकड़े पेड़ की साँसें घुट रही थीं जो अब अपने जीवन के अन्तिम दिन गिन रहा था।

हमारा राष्ट्र भी पेड़ की भाँति अनेक संस्कृतियों, विचारों, मान्यताओं एवं पीढ़ियों के लिए जीवनदायी आश्रय रहा है तथा हमने अमरबेल को पहचानने के बावजूद उसे पनपने का अवसर दिया है। पेड़ का दुर्भाग्यपूर्ण अन्त हुआ किन्तु अपने राष्ट्र में जीवन बना रहे, संस्कृतियां जीवित रहें इस हेतु अभी अवसर तो हैं किन्तु समय कम है। यदि हमने आज से भी सार्थक प्रयास प्रारम्भ किया तो यह जीवनदायी पेड़ सदा मुस्कुराता रहेगा।

- दीपक श्रीवास्तव 

Friday, July 24, 2020

जगत भिखारी बना दिया

जगत भिखारी बना दिया।

कर्मकाण्ड में उलझा-उलझा,
सुख-सम्पति की आस करे।
खाली झोली भर दे मौला,
पल-पल ये अरदास करे।
धर्म और मर्यादाओं का,
खूब तमाशा बना दिया।
जगत भिखारी बना दिया।

सकल पदारथ एहि जग माहीं,
हरि भीतर हैं बाहर नाहीं।
जानें सब पर माने नाहीं।
खुशियाँ सब बाहर से चाहीं।
अपना नाम दिखाने भर को,
साम-दाम सब लगा दिया।
जगत भिखारी बना दिया।

- दीपक श्रीवास्तव