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Saturday, January 23, 2021

श्रीदुर्गासप्तशती पंचम अध्याय (काव्य रूपान्तर)

श्री दुर्गासप्तशती काव्यरूप
(पंचम अध्याय)

(विनियोग मन्त्र)

ॐ अस्य श्रीउत्तरचरित्रस्य रूद्र ऋषिः, महासरस्वती देवता, अनुष्टुप् छन्दः, भीमा शक्तिः, भ्रामरी बीजम्, सूर्यस्तत्त्वम्, सामवेदः स्वरूपम्, महासरस्वतीप्रीत्यर्थे उत्तरचरित्रपाठे विनियोगः।

(ध्यान)
चक्र शंख मूसल को धारे,
घण्टा, हल व शूल तिहारे। 
कर कमलों में धनुष-बाण है,
दैत्य जनों के जीर्ण प्राण है।।

शरद-चन्द्र सी कान्ति दमकती,
सुर-नर-मुनि जन करते भक्ती। 
तीनों लोकों की आधार,
दैत्यों की तू नाशनहार।।

प्रगटी हो माँ गौरी तन से,
जपूँ निरन्तर निर्मल मन से। 
महासरस्वति नाम तिहारा,
सब तापों को हरने वाला।।

("ॐ क्लीं ऋषिरुवाच")

शुम्भ-निशुम्भ असुर थे भीषण, जिनसे सब आतंकित थे। 
जिनके बल के महागर्व से, तीनों लोक सशंकित थे।।

इन्द्रदेव को कर परास्त, तीनों लोकों का राज्य लिया। 
यज्ञभाग भी छीन लिए, ऐसे विशाल साम्राज्य किया।।

सूर्य, चन्द्रमा, यम, कुबेर, व वरुण देव का कार्य लिया। 
वायु, अग्नि के नित काजों का भी खुद ही अधिकार लिया।।

सारे सुरगण हुए पराजित, तथा घोर अपमान हुआ। 
अधिकारों से हीन हुए, विलगित अपना स्थान हुआ।।

सभी तिरस्कृत देवों ने देवी माँ का तब ध्यान किया। 
चिर-अपराजित देवी का, स्मरण किया, यशगान किया।।

जगदम्बा का किया स्मरण, जिनका देवों को वरदान। 
संकट में स्मरण मात्र से, तत्क्षण मिलता अभयदान।।


- दीपक श्रीवास्तव