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Friday, April 9, 2010

प्रीत की मनुहार

आज मेरे इन दृगों को,
      एक बार निहार साथी |
अश्रुओं में है झलकती,
      प्रीत की मनुहार साथी ||

जो नहीं तुम निकट मेरे,
      वेदना से तप्त जीवन |
प्रीत-अमृत से संवारो,
      आज यह अभिशप्त जीवन ||

हैं ह्रदय के तार कम्पित,
      प्रीत के मृदु राग छेड़ो |
तन भिगोयें, मन भिगोयें,
      राग वो मल्हार छेड़ो ||

प्रीत की भाषा मनोहर,
      तुम नए कुछ छंद दे दो |
सिमट जाऊं मै तुम्ही में,
      आज ऐसे बंध दे दो ||


-- दीपक श्रीवास्तव