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Sunday, October 21, 2018

मैं किसान हूं

मैं किसान हूं॥

धरती की उर्वरता को
अपने हाथों से सींचा है। 
खाली पेट बिताकर रातें
दिन भर अथक परिश्रम करके
सबका मैंने पेट भरा है
फिर भी क्यों गुमनाम हूँ
मैं किसान हूं॥1॥

चाहे मैं कम पढ़ा लिखा हूं
मेरी छोटी सी दुनिया है।
मगर देश की शान मुझी से
संस्कृति की पहचान मुझी से।
भले सभ्यता बढ़ती जाए
मैं ही उसका प्राण हूं
मैं किसान हूं॥2॥

कंक्रीटो के बड़े शहर में
 सांसे घुटती जाती हैं।
कचरा प्लास्टिक और प्रदूषण
से जब इंसान मरता क्षण क्षण
याद मेरी तब आती है।
फिर भी मैं वीरान हूं
मैं किसान हूं॥3॥
सबने धरती से हित देखा
मैंने धरती का हित देखा।
औरों ने बस दौड़ लगाई
धरती मां की कोख सुखाई
मैंने इसको सींचा है।
जीवन की पहचान हूं
मैं किसान हूं॥4॥

- दीपक श्रीवास्तव