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Friday, June 30, 2017

राम-सीता विवाह

जनकसुता वरने रघुवर को, वरमाला ले हाथ चली |
थोड़ी सिमटी कुछ सकुचाई, लाज शर्म के साथ चली ||
जन्मों का ये बन्धन कैसा,
साथ गंध के चन्दन जैसा |
ये विवाह का अनुपम अवसर,
युग-युग से तरसे नारी-नर |
निर्गुण को बन्धन में लेने, वरमाला ले हाथ चली |
थोड़ी सिमटी कुछ सकुचाई, लाज शर्म के साथ चली ||1||
नारायण का रूप अनोखा,
कहीं न हो अखियों का धोखा |
नर-हरि की ऐसी अद्भुत छवि,
वर्णन कर सकते ना मुनि-कवि|
देखन ऐसे महामिलन को, जगती नाथ-सनाथ चली ||
जनकसुता वरने रघुवर को, वरमाला ले हाथ चली |||2||  

--दीपक श्रीवास्तव

अहिल्या - उद्धार

जन्मों जन्मों राम पुकारा ।
राम नाम पर जीवन वारा ।
कुटिया मे करने उजियारा
स्वयं राम ने तब पग धारा ॥

उसका भाग्य न वर्णित होये । जो प्रभु पर ही अर्पित होये ॥
जीवन भर जो शरण पड़े हैं । वहीं राम के चरण पड़े हैं ॥
 मन में जो हो सच्ची भक्ति । भले नही हो तन मे शक्ति ॥
जो कण भर भी चल न पाते । उन्हें तारने खुद प्रभु आते ॥


भगवन मैं इक शापित नारी । कैसे पूजा करूँ तुम्हारी ॥
कैसी आज विचित्र घड़ी है । कुटिया भी खंडहर पड़ी है ॥
कहीं फूल अक्षत न चन्दन । न जानूं पूजन न वन्दन ॥
भेंट तुम्हें देने को भगवन । अश्रुधार से भरे दो नयन ॥

निश्छल निर्मल मन को धारे।
प्रभु को प्यारे भाव तुम्हारे ॥

-दीपक श्रीवास्तव

Thursday, June 29, 2017

राजा दशरथ का पुत्र प्रप्ति यज्ञ

राजा रानी दोनों तरसे |
पुत्र न जन्मे, बीते अरसे ||
यज्ञ पुत्र कामेष्टि कराया |
अग्नि देव ने रूप दिखाया ||
देव कहें चिन्तित क्यों राजे |
खुले ख़ुशी के सब दरवाजे ||
खीर पात्र राजन को दीन्ही |
सादर दशरथ कर में लीन्ही ||
अग्निदेव मृदु वचन सुनाये |
राजा-रानी के मन भाये ||
कौशल्या का आधा हिस्सा |
आधा कैकेयी का हिस्सा ||
दोनों ने इक भाग निकाला |
रानी सुमित्रा को दे डाला ||

-दीपक श्रीवास्तव 

प्रकृति माँ

जिसकी सुन्दरता की बातें ।
शब्द छन्द सीमित हो जाते ॥
जिन पर आधारित उपमायें ।
वर्णन मे सारे सकुचाये॥
तुम्हें प्रकृति या ईश्वर बोलूं ।
मन के भेद तुम्हीं से खोलूं ॥
सारी जीवन सृष्टि तुम्ही से ।
चेतनता की वृष्टि तुम्ही से ॥
हरा रंग समृद्धि रूप है ।
जीवन मे अमृत स्वरूप है ॥
धानी-पीला है मधुमास ।
सदा बुझाये जीवन प्यास ॥
सुन्दरता की सब सीमाएँ ।
तेरे आगे लघु हो जायें ॥

-दीपक श्रीवास्तव