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Thursday, June 29, 2017

प्रकृति माँ

जिसकी सुन्दरता की बातें ।
शब्द छन्द सीमित हो जाते ॥
जिन पर आधारित उपमायें ।
वर्णन मे सारे सकुचाये॥
तुम्हें प्रकृति या ईश्वर बोलूं ।
मन के भेद तुम्हीं से खोलूं ॥
सारी जीवन सृष्टि तुम्ही से ।
चेतनता की वृष्टि तुम्ही से ॥
हरा रंग समृद्धि रूप है ।
जीवन मे अमृत स्वरूप है ॥
धानी-पीला है मधुमास ।
सदा बुझाये जीवन प्यास ॥
सुन्दरता की सब सीमाएँ ।
तेरे आगे लघु हो जायें ॥

-दीपक श्रीवास्तव

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