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Monday, May 29, 2017

सन्त - असंत अन्तर

अन्तर सन्त असंतन कैसे ।
कमल जोंक के गुण हों जैसे ॥
दोनों ही दुख देना जानें ।
पर दुख मे अन्तर पहचानें ॥

मिले असंत तभी दुख होये ।
दुख पायें चेतनता खोये ॥
सन्त मिलें मानवता जागे ।
पीड़ा दूर दूर तक भागे ।

संतों से बिछुड़न दुख देता ।
सारी खुशियों को हर लेता ॥
लाभ -हानि सब अपनी करनी ।
कीर्ति-अकीर्ति इन्हीं की भरनी ॥

गुण-अवगुण जन सारे जानें ।
जो भाये उसको ही मानें ॥

- दीपक श्रीवास्तव 

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