विधि हरि हर कवियों की वाणी ।
जिनके वर्णन मे सकुचानी ॥
किस प्रकार मैं करूँ अकिंचन ।
संतों की महिमा का चिंतन ॥
जिनका मन हरि का वरदान ।
शत्रु - मित्र सब एक समान ॥
जैसे शुभ हाथों मे फूल ।
जो समता के अनुपम मूल ॥
सन्त सरल, जग के हितकारी ।
सकल सृष्टि जिनकी आभारी ॥
सच्चे मन से करूँ प्रणाम ।
सन्त कृपा से मिलते राम ॥
- दीपक श्रीवास्तव
जिनके वर्णन मे सकुचानी ॥
किस प्रकार मैं करूँ अकिंचन ।
संतों की महिमा का चिंतन ॥
जिनका मन हरि का वरदान ।
शत्रु - मित्र सब एक समान ॥
जैसे शुभ हाथों मे फूल ।
जो समता के अनुपम मूल ॥
सन्त सरल, जग के हितकारी ।
सकल सृष्टि जिनकी आभारी ॥
सच्चे मन से करूँ प्रणाम ।
सन्त कृपा से मिलते राम ॥
- दीपक श्रीवास्तव
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