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Thursday, February 11, 2010

लाल चुनर पहनाना

जाग उठी तरुणाई फिर से नव इतिहास बनाना,
प्यासी भारत माँ को है फिर लाल चुनर पहनाना।

वन-वन भटके राणा लेकर मातृभूमि का बाना,
मस्तक नहीं झुकाया चाहे पड़ा घास ही खाना।
आज समय की मांग यही है,
प्यास धरा की जाग रही है,
है स्वर्णिम इतिहास वही हमको फिर से दोहराना।
लाल चुनर पहनाना।।

इसी भूमि के लिए शिवाजी ने तलवार उठाया,
"हर-हर महादेव" का नारा फिर जग ने दोहराया,
बैरी की सीमा में जाकर,
अमर तिरंगा फिर लहराकर,
अपनी गौरव-गाथा का फिर से परचम फहराना।
लाल चुनर पहनाना।।

चूड़ी की झंकार, पिया की मेहंदी रास न आई,
हाथों में तलवारें लेकर लड़ी छबीली बाई,
केवल इतना ही है कहना,
इससे बड़ा न कोई गहना,
माँ लिए ही जीना माँ के लिए हमें मर जाना।
लाल चुनर पहनाना।।

--दीपक श्रीवास्तव

Tuesday, February 2, 2010

कर लो ध्येय मार्ग का वंदन

कर लो ध्येय मार्ग का वंदन,
मूक बधिर हो जाए क्रंदन।
नए जगत का हो अभिनन्दन,
नव जीवन भर-भर स्पंदन॥

जीवन में है बड़ी उदासी,
अश्रु दृगों में, खुशियाँ आसी।
अपना दुःख, अपनों की हांसी,
जगत अग्नि में प्राण चिता सी॥

हुआ जगत खुशियों का मेला,
अपनों के ही छल का ढेला।
देखो जीवन हुआ अकेला,
जगत खेल जब आई बेला।

भले आज हारे जीवन में
लेकिन कभी न हारे मन में।
बसे आज भी हैं हर मन में,
कभी सफल होंगे जीवन में॥

--दीपक श्रीवास्तव

Monday, February 1, 2010

तुम ही हो!!!

जिस पल में हो एहसास तेरा,

उस पल की आभा क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥



अंतर्मन में हो बसे हुए,

ये भाव नहीं ये तुम ही हो।

ये भाव न मुझसे शब्द हुए,

इन शब्दों में भी तुम ही हो।

जिनका उच्चारण नाम तेरा,

उन शब्दों का फिर क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥



भेष बदल छुप के आये,

आहट बोली ये तुम ही हो,

खुशियों के मेघ तभी छाये,

आँखें बोलीं ये तुम ही हो।

जिस जीवन में हो प्यार तेरा,

उस जीवन का फिर क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥


--दीपक श्रीवास्तव