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Thursday, October 20, 2016

संस्मरण:शीला झुनझुनवाला - एक सच्ची मुलाक़ात जो आधे झूठ से शुरू हुई-भाग-१

 यूं तो जैसे-जैसे जीवन का सफ़र चलता रहता है, वैसे-वैसे विभिन्न व्यक्तियों से मिलने का क्रम बनता है जिनमे से कईयों की बड़ी गहरी छाप स्मृति पटल पर अंकित हो जाती है, परन्तु उन्ही में कुछ ऐसे व्यक्ति भी मिलते हैं जो जीवन को ऐसी दिशा की ओर मोड़ने की क्षमता रखते हैं कि वहां से हमें न केवल अपना लक्ष्य दिखाई देता है, बल्कि लक्ष्य तक पहुंचाने वाले मार्ग में से बाधाओं का धुंधलका भी छंटता हुआ सा महसूस होने लगता है| मुझे भी अपने जीवन में भी ऐसी ही एक महान विभूति “शीला झुनझुनवाला” से मिलने का अनमोल अवसर मिला था जिसने मेरे जीवन मार्ग को बहुत ही सहज भाव से उन्नति की ओर प्रेरित किया और उनके मार्गदर्शन एवं दिशा-निर्देशों का क्रम आज भी निर्बाध गति से अनवरत चल रहा है|
बात जनवरी २०१३ की है, मेरी नन्ही बेटी डेढ़ महीने की हो रही थी और अपने ननिहाल में अपनी शिशुलीला द्वारा लोगों को आनन्द का रसपान करा रही थी| मैं उस आनन्द से वंचित नोएडा में परिवार के भरण-पोषण के एकमात्र स्रोत एच० सी० एल० कम्पनी में अपनी सेवायें देने में व्यस्त था| यह बात और थी कि मेरा शरीर भले ही नोएडा में था, किन्तु मन तो प्रत्येक क्षण पत्नी और बेटी के साथ बलिया में था| एक आइ० टी० में कम्पनी में सेवारत होने के कारण समाज से जुड़ने का अवसर बहुत कम है, लेकिन ऑफिस में शनिवार और रविवार का अवकाश होता है, अतः सप्ताह में दो दिन समाज को देखने-समझने तथा साहित्य-सेवा का समय भी मिल जाता है|
ऐसे ही एक अवकाश के दिन मै नोएडा के सुप्रसिद्ध समाजसेवी “श्री अशोक श्रीवास्तव” के आवास पर गया हुआ था जहाँ महान गायक “स्व० हेमन्त कुमार” के भांजे “प्रसून मुखर्जी” आये हुए थे| अशोक जी ने उनसे मेरा परिचय कराया और बताया कि मै लिखने में भी थोड़ी-बहुत रूचि लेता हूँ| प्रसून दा को एक कार्यक्रम के संचालन की स्क्रिप्ट लिखने में सक्षम किसी व्यक्ति की तलाश थी| अशोक जी ने प्रसून दा से कहा कि यह बच्चा आजकल अच्छा लिख रहा है, हो सकता है कि आपकी तलाश यहाँ पूरी हो जाय| उनके पूछने पर मैंने कहा कि मुझे स्क्रिप्ट लिखने का कोई अनुभव तो नहीं है लेकिन कवितायें लिख लेता हूँ और अपनी कुछ कवितायें भी सुनाईं| उन्हें कवितायेँ अच्छी लगीं और उन्होंने मुझसे कहा कि श्रीमती शीला झुनझुनवाला द्वारा आयोजित कार्यक्रम “मेलोडी ऑफ़ लाइफ” में स्व० यश चोपड़ा और स्व० साहिर लुधियानवी की स्मृति से जुड़े गीत गाये जायेंगे जिनके लिए मुझे भूमिका स्वरूपी कुछ पंक्तियाँ साहित्यिक शैली में लिखनी है और जिन्हें सञ्चालन के दौरान पढ़ा जाएगा| लेकिन लिखने से पहले शीला जी से मिलने का अवसर आने वाला था|
हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में ५० वर्षों से भी अधिक समय तक सक्रिय योगदान देने वाली श्रीमती शीला झुनझुनवाला का योगदान हिंदी के प्रचार एवं प्रसार के लिए अदभुत है| सन १९६० में टाइम्स समूह की प्रसिद्ध पत्रिका “धर्मयुग” के महिला पृष्ठों से उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था तथा अपने अदम्य उत्साह, कर्मनिष्ठा और लगन के दम पर आगे बढ़ते हुए शिखर तक पहुँचीं थीं| पत्रकारिता के माध्यम से नारी जगत को आधुनिक काल की समन्वित चेतना प्रदान करने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया| इतना ही नहीं, उन्होंने हिंदी में सर्वप्रथम निकलने वाली आधुनिक महिला पत्रिका अंगजा का सम्पादन भी किया| परन्तु शीला जी की प्रतिभा के विस्तार के लिए अंगजा का क्षितिज अत्यंत सीमित था| अतः उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की पत्रिका “कादम्बिनी” में सह-सम्पादक के पद को स्वीकार करते हुए अनेक योजनाबद्ध स्तम्भों का प्रारम्भ किया और उन्हें सुचारू रूप से आगे बढ़ाया| इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक नए लेखक-लेखिकाओं को हिंदी लेखन में प्रवृत्त किया जिनमे कई दक्षिण भारतीय भी शामिल थे| शीला जी अत्यन्त जागरूक पत्रकार रही हैं| सामाजिक और राजनैतिक घटना पटल को आंकने की पैनी दृष्टि, नए विषयों के चयन और कार्य करने की क्षमता और सूझबूझ के कारण शीघ्र ही उनको राष्ट्रीय महत्व के दैनिक पत्र “दैनिक हिन्दुस्तान” का संयुक्त सम्पादक के रूप में अपनी सेवायें देने का अवसर प्राप्त हुआ| उनहोने अपने कार्यकाल में “दैनिक हिन्दुस्तान” के रविवासरीय परिशिष्ट और अन्य साप्ताहिक परिशिष्टों ने हिंदी में दैनिक पत्रकारिता को कई नये आयाम दिए|
शीला जी पत्रकारिता के क्षेत्र में गंभीर एवं निरन्तर चेतनाशील रही हैं| इसी कारण उनको बहुप्रसारित प्रतिष्ठित साप्ताहिक “हिन्दुस्तान” पत्रिका का सम्पादक बनने का गौरव प्राप्त हुआ| डॉ. धर्मवीर भारती के अनुसार यह प्रथम अवसर था जब हिंदी पत्रकारिता के १५० वर्षों के इतिहास में कोई महिला इतनी बहुप्रसारित पत्रिका की सम्पादक बनी थी| शीला जी के कार्यकाल के समय में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में केवल गिनी-चुनी महिलायें ही थीं और जो थीं वे भी इतने उच्च पदों पर नहीं थीं साहित्य के क्षेत्र में थीं|
श्रीमती शीला झुनझुनवाला ने अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने परिश्रम, योग्यता एवं प्रयोगधर्मिता के माध्यम से उस शिखर को भी बौना साबित किया है, जहाँ तक पहुंचना अन्य लोगों के लिए स्वप्न जैसा है| अपने क्षेत्र में शीर्ष पर होने के बाद उन्होंने अपना बाकी जीवन समाज के उस तबके को समर्पित कर दिया जिन्हें अपना वजूद बनाये रखने के लिए सहारे की आवश्यकता है| उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में भी अत्यन्त उल्लेखनीय तथा अनुकरणीय योगदान दिया है जिनमे महिलाओं, बच्चों, विकलांगों तथा शिक्षा-स्तर की उन्नति प्रमुख है|
शीला जी को उनके सामाजिक योगदान और साहित्यिक पत्रकारिता की उपलब्द्धियों के लिए सन १९९१ में भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया था|

क्रमशः .....

Monday, October 10, 2016

दीपक श्रीवास्तव: जग में तुझ सी माँ ना होगी

दीपक श्रीवास्तव: जग में तुझ सी माँ ना होगी

जग में तुझ सी माँ ना होगी

मैं चंचल मैं पापी भोगी
जग में  तुझ सी माँ ना होगी ।
दर्शन बिन रोती हैं अंखिया
पूरी कब अभिलाषा होगी ॥

मन्त्र न  जानूं , यन्त्र न जानूं,
ध्यान न जानूं, तन्त्र न जानूं ।
तेरी मुद्रायें न जानूं,
व्याकुल हो विलाप ना जानूं।
तेरे पीछे चाहूं चलना
पर अनुचर के गुण न जानूं।
कलेश हरो माँ , अवगुण हर लो
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मैं पूजन अर्चन न जानूं
प्रायश्चित क्रंदन न जानूं।
त्रुटियों की मैं खान हूँ माता ,
ध्यान तुम्हारा ना कर पाता ।
तेरे द्वार नहीं आ पाया ,
लग चरणों से रो न पाया ।
फ़िर भी मुझको तूने सम्भाला
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मंत्र तेरा जो श्रवण करे तो
मूर्ख मधुर वक्ता हो जायें ।
दीन स्वर्ण वैभव पा जायें
भीरू पुरुष निर्भय हो जायें ।
एक मन्त्र का असर है ऐसा
जप तप का फल होगा कैसा ?
मुझको भी स्वीकार करो माँ
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मोक्ष न  माँगू , धन न माँगू
इस जग का वैभव न माँगू ।
तेरा नाम बसे  जीवन में
केवल इतना सा वर माँगू ।
तड़प रहा हूँ बिलख रहा हूँ
भव सागर में भटक रहा हूँ ।
मैं चंचल मैं पापी भोगी
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

- दीपक श्रीवास्तव 

Saturday, October 1, 2016

भाषा गीत

####भाषा गीत####

भाषाओं का पर्व मनायें ,
सब भाषाएँ मिलकर गायें
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
सभी गुँथे माला बन जायें ॥

सिन्धी उर्दू दोनों बहनें ,
पंजाबी संग मिलकर गायें ।
तमिल मराठी साथ साथ हो
भारत माँ के पर्व मनायें ।
सँथाली कन्नड़ उड़िया को
हिन्दी बहना गले लगाये ।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
सभी गुँथे माला बन जायें ॥

बांग्ला के संग झूमे तेलुगू ,
भारत की गायें गाथाएँ ।
गुजराती भी सदा एक है
नहीं डिगा सकती बाधायें ।
सब भाषायें वन्दन करतीं
माता संस्कृत खुशी मनाये
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
सभी गुँथे माला बन जायें ॥

-दीपक श्रीवास्तव
9871005927