Followers

Sunday, August 21, 2011

ख़त्म मगर संग्राम न समझो

चले गए अंग्रेज़ यहाँ से, ख़त्म मगर संग्राम न समझो |
मिले नहीं जब तक आज़ादी, तब तक पूरा काम न समझो ||

कहने को आजाद हुए हैं, पर आज़ादी कितनी पाई?
अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, हम सब में कितनी घुल पाई??
मातृभूमि का कण-कण बोले, चलो पथिक विश्राम न समझो |
मिले नहीं जब तक आज़ादी, तब तक पूरा काम न समझो ||


-- दीपक श्रीवास्तव