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Tuesday, July 30, 2013

अभी तो रात बाकी है


जरा सा और सोने दो|
अभी तो रात बाकी है||

हो रही आँखें उनींदी,
स्वप्न में अब डूब जाऊं|
कुछ घडी भूलूं जगत को,
जब दिवा से उब जाऊं|

जरा स्वप्नों में खोने दो,
अभी तक आस बाकी है|
जरा सा और सोने दो|
अभी तो रात बाकी है||१||

चल दिए अब तुम कहाँ ?
कुछ प्रहर का संग तो हो|
दो घड़ी को और ठहरो,
शून्यता यह भंग तो हो|

जरा सा और जीने दो,
अभी तक साँस बाकी है|
जरा सा और सोने दो|
अभी तो रात बाकी है||२||

--दीपक श्रीवास्तव

Saturday, July 27, 2013

मूरख इन्सां समझ न पाया

माँ कहती है तुम हो एक,
फिर क्यों तेरे रूप अनेक?
हम तुमको क्या कहें बताओ |
राम, कृष्ण या अल्ला नेक ||१||

कोई पूरब को मुंह करता,
कोई पश्चिम को ही धरता |
चाहे पूजा या नमाज हो,
ध्यान तुम्हारा ही तो करता ||२||

क्यों हैं तेरे इतने रूप?
दुनिया तो है अँधा कूप |
जात-धर्म की पग-पग हिंसा,
यही जगत का हुआ स्वरुप ||३||

माँ कहती सब तेरी माया,
अलग-अलग रखकर के काया |
जीवन का आदर्श बताया,
मूरख इन्सां समझ न पाया ||४||

--दीपक श्रीवास्तव