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Monday, November 7, 2016

साँसों पर भारी राजनीति

दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्र जहरीली धुन्ध से परेशान हैं, इसके दोषी भी हम ही हैं, परन्तु ऐसा लगता है कि राजनीति देश के नागरिकों की साँसों से भी अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है| वर्तमान स्थिति के लिए चाहे जो भी दोषी हो - पराली, निर्माण कार्य, पटाखे, डीजल गाड़ियाँ - अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि स्थिति अपनी चरम अवस्था पर है| बड़ा प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति इस वर्ष से कम ही सही, लेकिन प्रतिवर्ष आती है, इसे प्रशासन से लेकर नेता तक सभी जानते हैं, परन्तु सभी शायद इसलिए सोये रहते हैं कि यदि स्थिति भयंकर होगी तो राजनीति हेतु एक नया मुद्दा मिलेगा और समाचार चैनलों को टी. आर. पी. के लिए नयी सामग्री| इनके बीच में घुटता है आम नागरिक | अभी देश में जो कुछ भी चल रहा है उसे देखकर तो ऐसा ही लगता है|
-- दीपक श्रीवास्तव