कर लो ध्येय मार्ग का वंदन,
मूक बधिर हो जाए क्रंदन।
नए जगत का हो अभिनन्दन,
नव जीवन भर-भर स्पंदन॥
जीवन में है बड़ी उदासी,
अश्रु दृगों में, खुशियाँ आसी।
अपना दुःख, अपनों की हांसी,
जगत अग्नि में प्राण चिता सी॥
हुआ जगत खुशियों का मेला,
अपनों के ही छल का ढेला।
देखो जीवन हुआ अकेला,
जगत खेल जब आई बेला।
भले आज हारे जीवन में
लेकिन कभी न हारे मन में।
बसे आज भी हैं हर मन में,
कभी सफल होंगे जीवन में॥
--दीपक श्रीवास्तव
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