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Thursday, May 4, 2017

सन्त गुण

धरती पर पर्वत जल उपवन ।
भीतर खनिजों की है खन खन ॥
ऐसा ही संतों का जीवन ।
राम नाम मे रमा रहे मन ॥
रामचरित मणियों की ज्योती ।
सारे दोषों को हर लेती ॥
गुरु पद कमल, नयन हैं अमृत ।
जिनका जीवन पुण्यों का कृत ॥
ग्रहण करूँ चरणामृत अंजन ।
रचता रामचरित दुख भंजन ॥
सर्व गुणों की जो हैं खान ।
गुरुवर को मेरा प्रणाम ॥

संतों की महिमा विचित्र है ।
ज्यों कपास का शुभ चरित्र है ॥
नीरस जिसकी डोडी होती ।
विषयासक्ति न कण भर होती ॥
जिसका भाल सदा उज्ज्वलतम ।
संतों का ऐसा निर्मल मन ॥
ज्यों कपास मे रेशे होते ।
संतों में गुण वैसे होते ॥
सहे कष्ट परछिद्र छिपाते ।
परदोषों को सन्त छिपाते ॥

- दीपक श्रीवास्तव 

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