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Tuesday, May 2, 2017

सर्व देव वंदना

भाव शब्द रस छँदन वंदन।
अक्षर शोभे जैसे चन्दन ॥
अर्थ अनेक छुपे निष्काम
सबको बारम्बार प्रणाम ॥

जिनके कर मे कलम सुशोभित ।
गुप्त किन्तु कण कण मे बोधित ॥
शब्दाक्षर से करूँ प्रणाम ।
जय जय चित्रगुप्त भगवान ॥

जय सरस्वती हँसवाहिनी ।
नमो नमो हे ज्ञानदायिनी ॥
तेरी ही किरपा से माते ।
तुच्छ जीव मन्त्र रच पाते ॥

जय गणेश जय जय गणनायक ।
विघ्नहरण जय , जयति विनायक ॥
मातृशक्ति जय आदिशक्ति जय ।
कृपा हुई तव, हुआ भक्तिमय ॥

जिनकी कृपा बिना मानव तन
देख न पाये अपना ही मन ॥
भूत प्रेत भस्म शमशान ।
जिनसे जुड़ पायें सम्मान ।
जो अनादि शाश्वत अविराम ॥
उन चरणों मे कोटि प्रणाम ।

 -दीपक श्रीवास्तव 

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