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Friday, May 5, 2017

सत्संगति

सत्संगति मे अति आनन्द ।
शब्द नहीं क्या लिखूं छन्द ॥
जो अविरल निर्मल प्रयाग ।
विषयों की जिससे बुझे आग ॥

राम कथा है गंगधार सी ।
ज्ञानदायिनी की पुकार सी ॥
विधि - निषेध कर्मों की बानी ।
यमुनाजी की पुण्य कहानी ॥

जहाँ शिव-हरी कथा निरन्तर ।
भर देती अंतस के अन्तर ॥
जहाँ धर्म मे दृढ़ विश्वास ।
हरि का प्रतिक्षण हो आभास ॥

शुभ कर्मों से बना समाज ।
हरि का ही स्वर, हरि ही साज ॥
सत्संगति अत्यन्त सहज है ।
इससे बड़ा न कोई ध्वज है ॥

महा अलौकिक अति रमणीय ।
शुभ - फलदायी निर्वचनीय ॥
सत्संगति की सुनो कहानी ।
यह श्री हरि की अमृत बानी ॥

पाते जो सुनते निष्काम ।
धर्म अर्थ मोक्ष व काम ॥

- दीपक श्रीवास्तव 

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