जीवन भर नर यत्न करे तो ।
बुद्धि कीर्ति समृद्धि वरे वो ॥
पाये सद्गति और विभूती ।
ये सब सत्संगति की ज्योती ॥
सत्संगति आनन्द धाम है ।
जो केवल कल्याण नाम है ॥
सारे साधन फूलों जैसे ।
सत्संगति फल मिले न कैसे ॥
सत्संगति से दुष्ट सुधरते ।
मन मे अवगुण नहीं ठहरते ॥
साधु कुसंगति में पड़ जायें ।
तब भी अवगुण ना अपनायें ॥
- दीपक श्रीवास्तव
बुद्धि कीर्ति समृद्धि वरे वो ॥
पाये सद्गति और विभूती ।
ये सब सत्संगति की ज्योती ॥
सत्संगति आनन्द धाम है ।
जो केवल कल्याण नाम है ॥
सारे साधन फूलों जैसे ।
सत्संगति फल मिले न कैसे ॥
सत्संगति से दुष्ट सुधरते ।
मन मे अवगुण नहीं ठहरते ॥
साधु कुसंगति में पड़ जायें ।
तब भी अवगुण ना अपनायें ॥
- दीपक श्रीवास्तव
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