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Friday, June 30, 2017

राम-सीता विवाह

जनकसुता वरने रघुवर को, वरमाला ले हाथ चली |
थोड़ी सिमटी कुछ सकुचाई, लाज शर्म के साथ चली ||
जन्मों का ये बन्धन कैसा,
साथ गंध के चन्दन जैसा |
ये विवाह का अनुपम अवसर,
युग-युग से तरसे नारी-नर |
निर्गुण को बन्धन में लेने, वरमाला ले हाथ चली |
थोड़ी सिमटी कुछ सकुचाई, लाज शर्म के साथ चली ||1||
नारायण का रूप अनोखा,
कहीं न हो अखियों का धोखा |
नर-हरि की ऐसी अद्भुत छवि,
वर्णन कर सकते ना मुनि-कवि|
देखन ऐसे महामिलन को, जगती नाथ-सनाथ चली ||
जनकसुता वरने रघुवर को, वरमाला ले हाथ चली |||2||  

--दीपक श्रीवास्तव

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