चलो चलो साथी दर्शन को आये हैं सियराम|
आये हैं सियराम अवध में आये हैं सियराम||
आज अवध कैसा रंगीला, ज्यों बासंती धानी-पीला|
लखन धरा, श्रीराम गगन हैं, मध्य सिया का शुभ दर्शन है|
तरस रही थी प्यासी धरती, अमृत हैं सियराम||1||
दो नैना भरपूर निहारें, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाए|
रोम-रोम अंखियाँ बन जाएँ, तभी प्यास पूरी हो पाए|
जीव, गगन औ धरा मगन हो, गाये हैं सियराम||2||
-दीपक श्रीवास्तव
आये हैं सियराम अवध में आये हैं सियराम||
आज अवध कैसा रंगीला, ज्यों बासंती धानी-पीला|
लखन धरा, श्रीराम गगन हैं, मध्य सिया का शुभ दर्शन है|
तरस रही थी प्यासी धरती, अमृत हैं सियराम||1||
दो नैना भरपूर निहारें, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाए|
रोम-रोम अंखियाँ बन जाएँ, तभी प्यास पूरी हो पाए|
जीव, गगन औ धरा मगन हो, गाये हैं सियराम||2||
-दीपक श्रीवास्तव
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