सारे जग के पालनहारा,
पैरन मे पैजनिया डारा ।
उठत गिरत अरु किलकि किलकि कर,
ठुमक ठुमक मोहें जग सारा ॥
माँ की गोदी रहे लुकाई,
इधर उधर ढूंढे सब भाई ।
धूरि धूरि भये भुइयां लोटे ,
लीला प्रभु की अपरम्पारा ॥1॥
दशरथ तो आनन्द मगन हैं ,
राम धरा राम ही गगन हैं ।
सुत रूठे गोदी ना आये ।
बड़े प्यार से तब पुचकारा ॥2॥
शिशुलीला सुख परम अनूपा ,
गायें सुर नर मुनि जन भूपा ।
हरि की महिमा अजब निराली ।
अति आनंदा परम अपारा ॥3॥
-दीपक श्रीवास्तव
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