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Friday, July 14, 2017

---------कर्म-लाभ-लोभ--------

कर्म ही केवल हाथ हमारे, सबका जीवन यही सँवारे ।
देखो लोभ न आये मन में, फल तो हरि इच्छा है प्यारे ॥

कैकेयी का नाम क्रिया है ।
जो दशरथ की स्नेह प्रिया है ।
फल का नाम मंथरा दासी ।
कर्म लाभ की जो प्रतिभासी ।
रहे कर्म आगे ही सारे, फल तो हरि इच्छा है प्यारे ॥1॥

अवध प्रेम का अमिट खजाना ।
कर्म प्रमुखता स्वर्ग समाना ।
जब तक हों कैकेयी आगे ।
दुख दारिद्र दूर से भागे ।
प्रेम सभी के जीवन तारे, फल तो हरि इच्छा है प्यारे ॥2॥

जैसे भई मंथरा आगे ।
कर्म लाभ के पीछे भागे ।
लाभ तभी बन जाये लोभ ।
अति फल दृष्टि जगाये क्षोभ ।
चारों ओर जलें अंगारे, फल तो हरि इच्छा है प्यारे ॥3॥

-दीपक श्रीवास्तव 

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