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Saturday, July 1, 2017

श्रीराम वन गमन

मोरे राम, मोरे राम, मोरे राम|
अवध न छोड़ो, रुक जाओ श्री राम|
प्रभु राम, मोरे राम, मोरे राम,
तुम ही सुबह तुम्ही हम सबकी शाम||

चलत रामु लखि अवध अनाथा। बिकल लोग सब लागे साथा।।
कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं। फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं।।
छले पड़ गए रटते रटते राम||1||

सूनी मोरी नगरी सारी, कहाँ गयी घर की किलकारी|
समय ख़ुशी का कैसे बीता, रंगत सारी ले गयी सीता|
राम तुम्ही जीवन अधार हो, भीतर बाहर तुम सकार हो|
हे दुःखभंजन हे रघुनन्दन,
तुम्ही ही प्राण, तुम ही हम सबके धाम||2||

-दीपक श्रीवास्तव

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