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Thursday, July 6, 2017

भाइयों का प्रेम

इक साधक की सुनो कहानी, झर-झर नयनन बहता पानी ||
परिवारों में जकड़न देखी,
अपनों में ही अकडन देखी |
धन स्त्री औ भूमि चाह में,
हथियारों की पकड़न देखी |
मिले न सच्ची प्रेम निशानी, झर-झर नयनन बहता पानी||1||

पिता वचन को प्रभु घर त्यागे,
मगर भरत उनसे भी आगे |
रघुनायक को राज्य दिलाने,
संग प्रजा ले वन को भागे |
इक त्यागी दूजा बलिदानी, झर-झर नयनन बहता पानी||2||

हर समाज का अपना कल है,
जिसमे वर्तमान का हल है |
फिर भी जाने क्यों मानव का,
दम घुटता, हर पल हर क्षण है |
यही जगत की राम कहानी, झर-झर नयनन बहता पानी|३||

--दीपक श्रीवास्तव

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