जगत भिखारी बना दिया।
कर्मकाण्ड में उलझा-उलझा,
सुख-सम्पति की आस करे।
खाली झोली भर दे मौला,
पल-पल ये अरदास करे।
धर्म और मर्यादाओं का,
खूब तमाशा बना दिया।
जगत भिखारी बना दिया।
सकल पदारथ एहि जग माहीं,
हरि भीतर हैं बाहर नाहीं।
जानें सब पर माने नाहीं।
खुशियाँ सब बाहर से चाहीं।
अपना नाम दिखाने भर को,
साम-दाम सब लगा दिया।
जगत भिखारी बना दिया।
- दीपक श्रीवास्तव
कर्मकाण्ड में उलझा-उलझा,
सुख-सम्पति की आस करे।
खाली झोली भर दे मौला,
पल-पल ये अरदास करे।
धर्म और मर्यादाओं का,
खूब तमाशा बना दिया।
जगत भिखारी बना दिया।
सकल पदारथ एहि जग माहीं,
हरि भीतर हैं बाहर नाहीं।
जानें सब पर माने नाहीं।
खुशियाँ सब बाहर से चाहीं।
अपना नाम दिखाने भर को,
साम-दाम सब लगा दिया।
जगत भिखारी बना दिया।
- दीपक श्रीवास्तव
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