जल ही जीवन, जल ही जीवन।
इस अमृत से चेतन तन मन॥
जल बिन रक्त नसों में कैसे?
जल बिन वायु जियेगी कैसे?
जल बिन तन में जीवन कैसे?
जल बिन वृक्ष जिएंगे कैसे?
जल बिन कैसा भादो सावन?
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
चूर्ण मिले जल से जग खाए,
चूर्ण मिले जल से छत पाए।
जल तन की ऊष्मा पिघलाए।
जल ही मनके ताप मिटाए।
गौरव मान प्रतिष्ठा का धन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
तीर्थ जहां पर नदियां कल कल,
पावन करती तन मन पल पल।
सूखी नदियां ताल तलैया,
सूखी वृक्षों की मृदु छैया।
फिर से इनको दे दें जीवन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
- दीपक श्रीवास्तव
इस अमृत से चेतन तन मन॥
जल बिन रक्त नसों में कैसे?
जल बिन वायु जियेगी कैसे?
जल बिन तन में जीवन कैसे?
जल बिन वृक्ष जिएंगे कैसे?
जल बिन कैसा भादो सावन?
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
चूर्ण मिले जल से जग खाए,
चूर्ण मिले जल से छत पाए।
जल तन की ऊष्मा पिघलाए।
जल ही मनके ताप मिटाए।
गौरव मान प्रतिष्ठा का धन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
तीर्थ जहां पर नदियां कल कल,
पावन करती तन मन पल पल।
सूखी नदियां ताल तलैया,
सूखी वृक्षों की मृदु छैया।
फिर से इनको दे दें जीवन,
जल ही जीवन, जल ही जीवन॥
- दीपक श्रीवास्तव
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