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Sunday, September 2, 2018

मोहन के धाम

चलो चलो साथी हिल-मिल कर, मनमोहन के धाम,
मुरली की मीठी धुन बाजे, जहाँ प्रेम अविराम।।
गैया, पाहन और कदम्बें, सबकी जहाँ एक ही बोली,
छुपे जहाँ कण कण में मोहन, खोजत सब ग्वालन की टोली।
जहाँ कृष्ण की शीतल छाया, बाकी जग है घाम,
चलो चलो साथी हिल-मिल कर, मनमोहन के धाम।।१।।
छलके जहाँ भक्ति रस ऐसे, मुरली की मीठी धुन जैसे,
जहाँ गोपियाँ प्रेम मगन हों, भव-बन्धन छूटे ना कैसे,
जहाँ रचाते हर पल कोई, लीला मोरे श्याम,
चलो चलो साथी हिल-मिल कर, मनमोहन के धाम।।२।।
- दीपक श्रीवास्तव 

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