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Friday, September 14, 2018

--- हिंदी दिवस पर विशेष ---

सृष्टि के संचालन में संचार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है अतः संचार के माध्यम का सशक्त होना अति आवश्यक है। जब दो असमान तत्वों के बीच संचार होता है तो उसका माध्यम अनुभव या भाव-भंगिमा इत्यादि हो सकते हैं।

जब समान तत्वों के बीच संचार की बात होती है,  विशेष तौर से मनुष्य में, तब भाषा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही कारण है कि शिशु से भी संवाद करते समय व्यक्ति अपनी मूल भाषा का प्रयोग करता है। शिशु को भले ही वर्णमाला का ज्ञान ना हो किंतु निरंतर हो रहे संवादों से उसे वस्तुओं को पृथक शब्दों के साथ साम्यता स्थापित करने का अभ्यास हो जाता है तथा इस प्रकार उसके अंदर भाषा का विकास होता है। यह एक चरणबद्ध प्रक्रिया है तथा आगे के चरणो में वह वर्णमाला का अभ्यास करता है तथा भाषा को लिपियों के माध्यम से श्रव्य के साथ-साथ दृश्य भाव में भी अंगीकार करता है। किंतु भाषा का क्षेत्र केवल संचार माध्यम तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि भावाभिव्यक्ति का यह माध्यम व्यापार, चिकित्सा, विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए संस्कृति एवं विकास का अंग बन जाता है।

आज भारतीय समाज ने वैश्विक स्तर पर बहुत प्रगति की है तथा लगभग हर देश के साथ अच्छे व्यापारिक एवं राजनैतिक संबंध स्थापित किए हैं। जाहिर सी बात है कि इस कार्य में अन्य देशों की भाषाओं को अपनाने की शैली विकसित की गई है। यह कार्य इसीलिए सफलतापूर्वक हो सका है क्योंकि हमारी संस्कृति प्रत्येक भारतीय के जीवन में वसुधैव कुटुंबकम की भावना को मजबूती से स्थापित करती है। यह कार्य केवल एक भाषा का चमत्कार नहीं है वरन् जब भाषा में संस्कृति घुली हुई हो, आदर्शों की भावना हो, जीवमात्र हेतु सम्मान का भाव हो, मर्यादाएं हो, स्वतंत्रता हो, विनम्रता हो तभी नागरिकों में इतनी शक्ति आती है कि वे विश्व बंधुत्व की भावना लिए अन्य संस्कृतियों एवं भाषाओं का सम्मान करते हुए उनके मध्य प्रगाढ़ संबंध बना सकते है। हमारी हिंदी में यह सुंदरता नैसर्गिक रूप से रची बसी है।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमारी हिंदी केवल संचार का माध्यम न होकर अपने आप में पूरी संस्कृति है। यही कारण है कि एक आम हिंदीभाषी के अंदर अन्य भाषाओं एवं संस्कृतियों के प्रति सम्मान का भाव है। वैश्विक भाषा बन चुकी अंग्रेजी को भी हिंदी से प्रेम रखने वाले उसी भाव से स्वीकार कर पाते हैं। यह हिंदी की शाश्वत सुंदरता है। हिंदी भाषियों के हृदय में श्रेष्ठता का अहंकार नहीं होता बल्कि आदर एवं विनय उनके सहज स्वभाव में सम्मिलित होता है। हिंदी के जितने प्रमाणिक ग्रंथ हैं वे व्यक्ति की आंतरिक दृष्टि को उनकी चेतना से जोड़कर व्यक्ति के सहज स्वरूप का दर्शन कराने की क्षमता रखते हैं। जब व्यक्ति के अंदर श्रेष्ठता का अहंकार होता है तब वह बाहरी नेत्रों द्वारा दूसरों के दोष एवं आत्मप्रशंसा में अपना जीवन व्यर्थ कर देता है। ऐसा जीवन पूरी तरह दिखावटी होता है तथा झूठी श्रेष्ठता के दिखावे के कारण व्यक्ति के अंदर अनर्गल संचय की प्रवृत्ति विकसित होती है जिसके कारण मान-सम्मान एवं मर्यादाओं की परवाह किए बिना वह कोई भी अनैतिक कार्य करने में नहीं हिचकता।

भाषा केवल कुछ अक्षरों, मात्राओं, शब्दों एवं वाक्यों का समुच्चय नहीं है बल्कि यह मानवीय सभ्यता का प्रथम चरण है। अतः इसमें मानवीय संवेदनाओ की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। जो मधुरता का भाव मां, अम्मा, माई, बाबूजी, पिताजी, भइया, दीदी जैसे शब्दों में आता है वही भाव मॉम, पा, ब्रो या सिस जैसे शब्दों में नहीं मिलता। भारतीयों के लिए वैश्विक भाषा को संचार माध्यम के रूप में अपनाना बहुत अच्छा है क्योंकि इसमें देश की प्रगति निहित है।

विकास आवश्यक है किंतु अपनी जड़ों की कीमत पर किया हुआ विकास स्वयं के ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देता है। हम तभी तक सशक्त हैं तथा दूसरों के साथ सक्षम संवाद करने में समर्थ है जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं अन्यथा हमारा जीवन कटी हुई पतंग के समान है जो भले ही जमीन से बहुत ऊंचा दिखाई दे रहा हो किंतु उसके अस्तित्व का भविष्य अनिश्चित है - वह पेड़ों की झाड़ियों में फंसकर नष्ट हो सकता है, नदी नालों में बहकर अपनी लीला समाप्त कर सकता है अथवा बच्चों की छीनाझपटी के दौरान फट सकता है।  उसके पुनः आकाश तक पहुंचने का केवल एक ही मार्ग है कि किसी सुरक्षित हाथ में पड़े जो उसे पुनः डोरी से जोड़ कर उसे ऊंचाई तक पहुंचाने हेतु प्रयास करे।

हिंदी संवेदनशील है। हिंदी में दूसरी भाषाओं का सम्मान है यही कारण है कि इतनी सशक्त भाषा होने के बावजूद हिंदी अन्य भाषाओं जैसे अंग्रेजी, उर्दू, सिंधी, पंजाबी, गुजराती, बांग्ला इत्यादि के शब्दों को भी सहजता से स्वीकार कर लेती है। हमारा दायित्व है कि हिंदी की इस विशालता एवं विराटता को नमन करें तथा इसका प्रयोग करने में गर्व का अनुभव करें। हिंदी हमारी संस्कृति है, हिंदी हमारा गर्व है, हिंदी हमारी धरती है, हिंदी हमारा आकाश है, हिंदी हमारा जीवन है, हिंदी हमारी चेतना है,  हिंदी हमारी स्वांस है, हिंदी हमारा प्राण है, हिंदी हमारी जागृति है।

- दीपक श्रीवास्तव

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