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Sunday, September 9, 2018

--- जातिगत भेदभाव के भंवर में हम ---

सैकड़ों वर्ष पुराना भारतीय समाज तो हमने नहीं देखा किंतु यह सत्य है कि जब से होश संभाला है, स्थानीय स्तर पर जाति के आधार पर भेदभाव महसूस किया है। निश्चित रूप से कुछ पीढ़ियां इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं किंतु यह भी सत्य है कि अनेक वर्गों ने इसके विरुद्ध जन जागरण हेतु निरंतर प्रयास किया है। दुर्भाग्यवश बीते समय को लौटाना असंभव है किंतु यदि घाव हो जाए तो उसे बढ़ाने से पीड़ा कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही है। आज यही घाव नासूर का रूप लेता जा रहा है जिसके कारण देश दुर्बलता की ओर बढ़ रहा है। जब शरीर दुर्बल हो जाता है कोई भी शत्रु मौका देख कर उसे मार सकता है किंतु अभी भी समय है और हम अपने राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को बनाकर इस नासूर पर विजय प्राप्त कर सकते हैं केवल थोड़ी सी इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

बचपन में पढ़ी एक छोटी सी कहानी याद आती है कि एक बार शरीर के सभी अंगों में विवाद हो गया। पैरों का कहना था कि मेरे ही दम से पूरा शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति करता है, हाथों का कहना था कि सारे प्रमुख काम में ही करता हूं, मुंह का कथन था कि मेरे माध्यम से भोजन शरीर में पहुंचता है इसी प्रकार अन्य अंगों की भी अपनी अपनी बातें थी। किंतु सबका एक कथन था कि सभी लोग मिलकर पेट के लिए प्रयास करते हैं तथा पेट को क्या काम करना होता है?  यह तो निट्ठल्ला बैठा हुआ हमारी मेहनत को हजम करने में लगा रहता है। सभी अंगों ने निश्चय किया कि जब तक पेट कुछ काम नहीं करेगा तब तक हम इसके लिए कोई काम नहीं करेंगे। बस फिर क्या था सभी अंग हड़ताल पर चले गए। कुछ दिन बीते तो सभी अंगों ने अपने अंदर कमजोरी महसूस की। तब अनुभव से सभी को समझ में आया कि जो भी भोजन अंदर जाता है पेट उसे बचा कर सभी अंगों को आवश्यक पोषक तत्व पहुंचाता है जिसकी वजह से वह काम करते हैं अतः उन्होंने अपना अपना कार्य करना शुरू कर दिया तथा पुनः पहले जैसे सशक्त हो गए।

 जगदीश गुप्त जी की एक प्रसिद्ध कविता है - अपने हृदय का सत्य अपने आप हमको खोजना। अपने नयन का नीर अपने आप हमको पोंछना। आकाश सुख देगा नहीं धरती पसीजी है कहीं? जिससे हृदय को बल मिले है दे अपना तो वही।" 

अतः हमारे समाज में आ रही समस्याओं को ना तो कोई राजनीतिज्ञ सुलझाएगा या ना कोई बाहर से आकर हमारा सहयोग करेगा। यह एक परिवार की बात है तथा परिवार के अंदर से ही इसका हल निकलेगा। यदि हर वर्ग केवल अपना अपना निजी लाभ देखते  हुए एक दूसरे पर कीचड़ उछाले गा या कमजोर करने का प्रयास करेगा तो तो कभी भी इसका लाभ समाज को नहीं मिल पाएगा तथा नासूर बन चुका यह घाव हमारी जान ले लेगा। इसका लाभ स्वार्थी षड्यंत्रकारी उठाते रहेंगे और हम बंटते रहेंगे। अतः सभी से निवेदन है कि भले ही अपना लाभ देखें किंतु समाज को बांटने वाली शक्तियों को पहचानकर उसके विरुद्ध संगठित होकर प्रतिकार करें।  अपनी दृष्टि में दूरदर्शिता विकसित करें ताकि हमारे बाद भी हमारी पीढ़ी हमारे द्वारा की गई गलतियों का फल न भोगने पाये। हम जिए न जिए हमारी पीढ़ी जिये।  हमारा देश जिए यह राष्ट्र जिए। 

- दीपक श्रीवास्तव

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