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Tuesday, February 11, 2020

चीख रहा कश्मीर

चीख रहा कश्मीर, बिलखता दर्द भरे जज्बातों में ।
सुलग रहा है देश, कहाँ भाईचारा है बातों में।।

था धरती का स्वर्ग, जहां इन्सान दिखाई देते थे।
रोम-रोम में प्रेम भरे, नित गीत सुनाई देते थे।।

बरसों से थीं जहां पीढियां, प्रेम भरे मृदु बन्धन में।
हाय, समय कैसा आया, सब भूले बिछड़े क्रन्दन में।।

एक ओर बचपन की यारी एक ओर थी कौम खड़ी।
इंसा से हैवाँ की दूरी, नहीं रही कुछ खास बड़ी।।

आसमान में बिजली कौंधी, मस्जिद गूंजे नारों से।
महिलाओं को छोड़ भगो या शीश कटाओ वारों से।।

बचपन के संगी-साथी, जो प्राणों से भी प्यारे थे।
साथ पढ़े, संग-संग ही खेले, दुनिया से वे न्यारे थे।।

एक मित्र की आंखों में अब जाने कौन खुमारी थी।
खून भरे जज्बातों से हारी बचपन की यारी थी।।

नहीं रही वेदना हृदय में, रही मित्रता धारों पे।
कितने ही सिर गिरे भूमि पर, रक्त लगा तलवारों पे।।

अंगारे थे भरे नयन में, मानवता भी हारी थी।
मां बहनों की लाज लूटने की आई अब बारी थी।।

जिसने जीवन भर पिशाच के साथ निभाई यारी थी।
उसकी माता और बहन ने कीमत खूब चुकाई थी।।

जिसने भाई मान कलाई पर राखी भी बांधी थी।
आज उसी की देह नोचने प्रबल वासना जागी थी।।

अस्मत के हो रहे चीथड़े, तन-मन था चीत्कार रहा।
नाजुक अंगों से अंतड़ियों तक चाकू का वार रहा।।

बच्ची या कोई नवयुवती, सुनी किसी ने आह नही।
गर्भवती या वृद्धा थी, लेकिन कोई परवाह नहीं।।

हैवानों के मन-मस्तक में खून भरा था, शोला था।
अस्मत की नीलामी करके तलवारों पे तोला था।।

शिक्षक को करके छलनी शिष्यों की ही तलवारों ने।
गुरुमाता के साथ घिनौना कृत्य किया गद्दारों ने।

जिनके दम पर रोजी-रोटी गद्दारों की चलती थी।
उसी मालकिन पर कुदृष्टि थी, हवस-वासना पलती थी।।

शोषित-पीड़ित कहाँ दर्द बतलायें यह था प्रश्न बड़ा।
शासन और प्रशासन उनके लिए नहीं था रहा खड़ा।।

जनता का नेतृत्व विमुख हो करता कुछ मनमानी था।
न्यायालय की आस लगा पाना भी तो बेमानी था।।

बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की उम्मीदें भी छोड़ चले।
बसा-बसाया घर अपना, अपनी दुनिया को छोड़ चले।।

जिनके अपने बड़े मकाँ थे, पड़े टेन्ट में रातों में।
खाने पीने की सुधि खोई, ऐसे दुःख हालातों में।।

दिल्ली में थी शरण मिली, उम्मीद जगाए बैठे हैं।
दिवस-महीने बरसों बीते, आस लगाए बैठे हैं।।

स्वर्ग भरा सुन्दर जग अपना, क्या वापस मिल पायेगा?
क्या लौटेंगे घर को अपने, दर्द कभी सिल पायेगा??

चीख रहा कश्मीर, बिलखता दर्द भरे जज्बातों में ।
सुलग रहा है देश, कहाँ भाईचारा है बातों में।।

- दीपक श्रीवास्तव

2 comments:

AMIT GAUTAM said...

वंदेमातरम भारत माता की जय ।

दीपक श्रीवास्तव said...

धन्यवाद अमित जी