राम-नाम ही जपना जीवन मे केवल पर्याप्त नहीं है।
जीवन है निष्फल जब तक तन-मन में मानस व्याप्त नहीं है।।
रामचरित के हर प्रसंग में जीवन दर्शन रमा हुआ है।
मन की धूल हटाकर देखो, जो बरसों से जमा हुआ है।।
खर-दूषण से युद्ध राम का, एक अलौकिक सत्व लिए है।
भ्रम पर ज्ञान सदा विजयी है, इसी सत्य का तत्व लिए है।
खर-दूषण चौदह हज़ार की सेना लेकर चले समर में।
अति बलवान, प्रबल मायावी, धूल उड़ाते दिवा प्रहर में।।
राम-लखन संग सीता माता पर्णकुटी में विहर रहे थे।
वन विहार की मीठी-तीखी स्मृतियों में विचर रहे थे।।
तभी कुटी पर देख शत्रु को, राम सरासन बाण धरें।
लक्ष्मण सीता संग खड़े थे, राम शत्रु के प्राण हरें।।
किन्तु प्रश्न है उठता फिर भी, शत्रु प्रबल, सेना तमाम है।
दो योद्धा हैं साथ किन्तु इस युद्धभूमि में सिर्फ राम हैं।।
यदि लक्ष्मण भी युध्द करें तो शीघ्र विजय मिल सकती है।
जीवन में पुरुषार्थ अगर हो, विजय दूर कब रहती है?।
यही भेद है राम और रावण में, इसको जानें हम।
दोनों में है ज्ञान किन्तु अंतर को भी पहचानें हम।।
राम ज्ञान, वैराग्य लखन हैं, भक्ति पुनीता सीता हैं।
जिसमें है वैराग्य उसी ने अहंकार को जीता है।।
मन मे यदि संशय हो जाये, बुद्धि भ्रमित हो जाती है।
तभी चित्त में मोह उपजता, यही द्वन्द शुरुआती है।।
मायावी सेना विशाल खर-दूषण भ्रम का रूप है।
परम धाम श्रीराम युद्ध में चेतन ज्ञान स्वरूप हैं।।
ज्ञान सदा ही भ्रमभंजक है, किन्तु दम्भ उपजा देता।
भक्ति नष्ट कर मानव जीवन, को यह बड़ी सजा देता।।
जब तक है वैराग्य मनुज में, तब तक भक्ति सुरक्षित है।
राम युद्ध में इसीलिए, सीता लक्ष्मण से रक्षित हैं।।
मायावी छल-बल की सेना, अट्टहास कर युद्ध करे।
ज्ञानरूप श्रीराम अकेले, कैसे इनको शुद्ध करें?।
तभी राम ने मायारूपी प्रबल बाण संधान किया।
युद्ध कर रहे हर सैनिक को अपना रूप प्रदान किया।।
यही राम का चिर स्वभाव, रामत्व सभी को देते हैं।
ज्ञानवान हो जाते प्राणी, सभी भ्रान्ति हर लेते हैं।।
मायावी दूषण की सेना, निज स्वरूप का ज्ञान नहीं।
दूजा सैनिक राम दिखे, लेकिन अपना अनुमान नहीं।।
यह समाज की है विडम्बना, बस औरों के दोष दिखें।
अपना मन कोई ना झांके, जिसमें अपने दोष दिखें।।
देख अगर लेते सैनिक, भूले भी अपना रूप कहीं।
सारे भ्रम मिट जाते मन के, मिलता अपना रूप वहीं।।
किन्तु यहां विपरीत दृश्य है, राम रूप पर वार चले।
शत्रु समझ अपने ही साथी अपनों को ही मार चले।।
इस प्रकार श्रीराम युध्द में, कर माया संहार चले।
भक्ति सुरक्षित है विराग से, जब भ्रम पर तलवार चले।।
किन्तु ज्ञान धारे रावण में, रंच मात्र वैराग्य नहीं।
इसीलिए आसक्ति प्रबल है, जीवन में सौभाग्य नहीं।।
राम-नाम ही जपना जीवन मे केवल पर्याप्त नहीं है।
जीवन है निष्फल जब तक तन-मन में मानस व्याप्त नहीं है।।
- दीपक श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment