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Wednesday, February 5, 2020

जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की

गंगा जमुनी रटने वालों ,
खून तुम्हारा पानी है।
जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की,
वह जीवन बेमानी है।

जब लाखों निर्दोष कटे थे,
कहाँ तुम्हारा ज्ञान छिपा था?
भारत माँ पर जुल्म हुए जब,
कहाँ महान विचार छिपा था?
माँ-बहनों ने आन बचाने,
जौहर में निज प्राण दिए।
पर तुम जैसे गद्दारों ने,
हमें भ्रमित इतिहास दिए।
तेरी नस-नस में है बहती,
जहर भरी बेईमानी है।
जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की,
वह जीवन बेमानी है।।1।।

जब मुगलों की तलवारों से,
हिन्दू थर-थर कांपे थे।
प्राणों की रक्षा करने में,
सिक्ख हमारे आगे थे।
शीश कटाया, उफ़ न बोला,
टुकड़े-टुकड़े हुआ शरीर।
दिल के टुकड़ों की बलि दे दी,
लेकिन झुक न सका जमीर।
तुमने उनकी हंसी उड़ाई,
हा! धिक्कार जवानी है।
जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की,
वह जीवन बेमानी है।।2।।

बच्चों में भ्रम फैलाने को,
एक पक्ष का पाठ दिया।
गंगा-जमुनी रटते-रटते,
राष्ट्र हमारा बांट दिया।
खिलजी-बाबर-अकबर के नित,
गुण गाने वालों बोलो।
स्वतंत्रता की बलिबेदी पर,
इनके योगदान तोलो।
अगर नहीं संभले अब तक भी,
फिर तो मुंह की खानी है।
जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की,
वह जीवन बेमानी है।।3।।

मेरे अमर सपूतों ने जो,
हमको राह दिखाई है।
इस जीवन को दिव्य बनाने,
की बारी अब आई है।
भारत माँ ने बहुत सहा है,
और नहीं सहने देंगे।
देह भले त्यागेंगे लेकिन,
शीश नहीं झुकने देंगे।
पहले देश तभी हम सब हैं,
अपने मन में ठानी है।
जिसे नहीं हो आन राष्ट्र की,
वह जीवन बेमानी है।।4।।

- दीपक श्रीवास्तव

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