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Friday, September 13, 2019

--- जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दुख होई ---

जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दुख होई॥
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई। गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई॥

यहाँ गोस्वामी जी ने स्वप्नावस्था में सिर कटने की कल्पना का अनूठा प्रयोग किया है। स्वप्न व्यक्ति की अचेतन अवस्था है तथापि इस अवस्था में होने वाले सुख एवं दुःख दोनों से ही हमारा मुक्त होना निश्चित है। इस प्रयोग में सिर कटने अर्थात दुःख का दृश्य है जिसे कोई भी जीव अपने जीवन में नहीं चाहता। हरि की माया से उत्पन्न भ्रम में सुख तो सभी चाहते हैं किन्तु दुःख नहीं चाहते, यदि स्वप्न में रत्नों से भरा कलश मिल जाय तो व्यक्ति को जागने की इच्छा तक नहीं होती, इसीलिए यहाँ गोस्वामीजी से भ्रम द्वारा उत्पन्न दुःख की बात की है। श्रीराम कृपा से तो दुःख एवं सुख दोनों के पार देखने की दृष्टि उत्पन्न हो जाती है तथा जीवन आनन्दमय हो जाता है। किन्तु निद्रा एक विशेष अवस्था है जिसे प्रतिदिन प्राप्त करना आवश्यक है इस सम्बन्ध में एक विचार प्रस्तुत है:

हम में से ज्यादातर को जीवन से या जीवन में क्या चाहिए- एक सुखी परिवार, आवश्यकतानुसार या कुछ अधिक धन, भौतिक जरूरतों के सामान, कुछ मित्र तथा अनेक ऐसी वस्तुएं, जिसको पाने से हम अपने सुखी जीवन की कल्पना करते हैं, किंतु इच्छित वस्तुएं मिल जाने के बाद भी क्या हम उतने ही सुखी रह पाते हैं जो हमारी कल्पना में होता है? शायद नहीं! फिर हमारे प्रयास की दिशा क्या होनी चाहिए, यह मंथन का विषय है।

अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम निरंतर प्रयास करते हैं। प्रयास फलीभूत भी होता है तथा हमें कुछ समय की खुशी अवश्य देता है। इसके पश्चात मन अन्य आवश्यकताओं हेतु अपने आपको तैयार करता है, यही प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है। मैं, मेरा परिवार, मेरा घर, मेरा समाज, मेरी संपत्ति, मेरा नाम इत्यादि में हमने अपने अनंत स्वरूप को बांध रखा है किन्तु हम प्रतिदिन इन बंधनों से मुक्त भी होते हैं। अपने निद्रावस्था की कल्पना करिए, बड़ी से बड़ी थकान हो किंतु निद्रा की अवस्था में, हमें अपनी प्रत्येक प्रिय वस्तु, संबंध, सामाजिक स्तर, धन-बल इत्यादि से पूर्णतया मुक्ति होती है। इतना ही नहीं, जब निद्रा की अचेतन अवस्था में हम अपने चेतन स्वरूप के साथ होते हैं, तब हमारे अंदर इतनी उर्जा का संचार होता है कि शरीर में कोई थकान नहीं रह जाती, एवं मन शारीरिक एवं मानसिक थकान से मुक्त हो जाता है। यह अनुभव हम सभी ने किया है, जिसका सीधा अर्थ है- अचेतन अवस्था में स्वयं से मुलाकात अर्थात उर्जा का अनंत प्रवाह। निद्रा में स्वप्न का होना भी हमारे परम-आनंद के मार्ग में बाधक है अतः स्वप्न रहित होना ही सबसे सबसे बड़ा स्वप्न है। 

निद्रा अचेतन अवस्था में मनुष्य को उसके अनंत स्वरुप से साक्षात्कार कराती है, किन्तु जाग्रत होने पर उसे स्वयं से साक्षात्कार की विस्मृति हो जाती है फिन्तु फिर भी वह स्वयं के अन्दर नवीन उर्जा संचार का अनुभव कर लेता है। चेतनावस्था में सामाजिक तानों-बानों से पृथक होकर स्वयं से एकाकार हो जाना ही समाधि की अवस्था है जो हमें अपने अनंत स्वरूप से मिलाने की दिशा में सार्थक प्रयास है। श्रीराम कृपा बिना चेतनावस्था में स्वयं से एकाकार होने की कोई संभावना नहीं बनती। लोकभाषा में एक कहावत है – “जेकर बनरिया, उहै नचावै” अतः जिसकी माया अर्थात जिसने भ्रम दिया, वही इस भ्रम से दूर करे, परन्तु भ्रम से मुक्ति सहज नहीं है, उसके लिए निरन्तर कर्म करना पड़ता है। ठीक वैसे ही जैसे एक कक्षा में अनेक विद्यार्थी हैं, गुरु सभी के लिए एक ही हैं किन्तु अंक योग्यता एवं परिश्रम के आधार पर तय होते हैं। वही दूसरी ओर योग्यता होने पर भी यदि विद्यालय न जाएँ तथा गुरुकृपा न हो तो जीवन में ज्ञान प्राप्ति की संभावनाएं नगण्य हो जाती हैं उसी प्रकार भ्रम से मुक्ति हेतु रघुनाथ कृपा ही एकमात्र विकल्प है।


- दीपक श्रीवास्तव

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