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Saturday, November 28, 2009

लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!

अनगिनत जीवन अचेतन भोग लिप्सा में समाये,
सत्य से अनभिज्ञ रह निज संस्कृति न जान पाये।
भोग संस्कृति त्याग हमको स्वत्व पीड़ा है मिटाना;
लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!

द्वेषमय अविरल पवन में मार्ग से जो भटक आए,
पथ प्रकाश कुसुम सुधा हरि अंश को न देख पाये।
मेट मृगतृष्णा हमें मनुजत्व उनकों है बताना;
लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!

कंटकों की मार में भी जो विजय के गीत गाये,

मद, गरल, दनुजत्व कंचन लोभ जिस पर चढ़ न पाये।

राष्ट्र दीपक बन उसे ही घोर तम में पथ दिखाना;

लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!

--दीपक श्रीवास्तव

3 comments:

Unknown said...

EXCELLENT......

manish said...

this is really a mind blowing article. ultimate

nagesh said...

really, great, no alochana, actally meri hindi itni majbut nahi hai,but lagta hai ki is poem me nihit bhavarth kafi achhchhe hai,nice keep it on