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Sunday, December 22, 2019

तन-मन-मानस" द्वितीय श्रृंखला का आयोजन सम्पन्न

श्री अरविन्द आश्रम की पावन तपस्थली में आयोजित तन-मन-मानस की द्वितीय श्रृंखला के अन्तर्गत प्रमुख वक्ता दीपक श्रीवास्तव ने पुरुषार्थ एवं प्रारब्ध के मध्य सन्तुलन की तत्वपरक सामाजिक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि मनुष्य के जीवन में पुरुषार्थ एवं प्रारब्ध सदैव एक दूसरे पर हावी होने का प्रयास करते रहते हैं। अक्सर मनुष्यों में किसी एक की प्रधानता पाई जाती है किन्तु श्रीरामचरितमानस दोनों में सन्तुलन स्थापित करने का महत्वपूर्ण सामाजिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। 

श्री दीपक श्रीवास्तव ने बताया कि बालि महायोद्धा था। वह घोर पुरुषार्थवादी तो था ही, साथ ही उसमे शक्ति का अहंकार भी था जिसके वशीभूत उसके कुछ कृत्य मानवता के विपरीत हो गए थे। चूंकि कर्मों के अनुसार व्यक्ति का प्रारब्ध सुनिश्चित होता है अतः श्रीराम ने एक वृक्ष की आड़ में खड़े होकर उसका वध किया था। कुछ लोगों के प्रश्न "श्रीराम ने बालि से युद्ध क्यों नहीं किया?" के उत्तर में उन्होंने बताया कि श्रीराम ईश्वर के सगुण रूप में उपस्थित हैं तथा ईश्वर स्वयं कभी युद्ध नहीं करता, वह तो व्यक्ति के कर्म की आड़ में न्याय करता है। यहाँ वृक्ष कर्म का प्रतिविम्ब है। अतः पुरुषार्थवादी बालि सबल होने के बावजूद अपने ही कर्मों द्वारा बने प्रारब्ध से बच नहीं पाता तथा इसी की आड़ में ईश्वर द्वारा न्याय कर दिया जाता है। अब बालि का प्रश्न होता है कि क्या उस पतितपावन परमेश्वर के साक्षात सगुण स्वरुप के दर्शन से भी मैं पापमुक्त नहीं हुआ?, उसी क्षण उसका मस्तक श्रीराम की गोद में होता है। 

उन्होंने मैना-पार्वती संवाद की व्याख्या करते हुए आगे बताया कि जब किसी सिद्धांत पर लोगों में मतभिन्नता होती है तब अक्सर तर्कपूर्ण बहस आधारहीन हो जाते हैं क्योंकि तर्क में पराजित व्यक्ति में मन में सिद्धांत से अधिक उनकी पराजय हावी रहती है तथा विजयी व्यक्ति के मन में विजय का अहंकार हावी होता है। यही कारण है कि घोर पुरुषार्थ की प्रतीक माता पार्वती, जिन्होंने अपने महान तप के आधार पर भगवान् शिव को पति रूप में प्राप्त किया था, ने मैना द्वारा शिवस्वरूप पर सन्देह के विरोध में कोई तर्क प्रस्तुत करने की बजाय प्रारब्ध का सहारा ही लिया जिससे मैना को पराजय का दंश नहीं झेलना पड़ा और न ही माता पार्वती में किसी प्रकार का अहंकार उत्पन्न हुआ। 

कार्यक्रम में अंकित चहल ने अपनी कविता से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुलश्रेष्ठ कैन्सर केयर चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ यतीन्द्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि समाज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए श्री अरविन्द आश्रम की ओर से इस प्रकार के आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन अति सुखद एवं समाज के हित में हैं। नव-सृजन समिति के अध्यक्ष श्री के सी श्रीवास्तव ने कहा कि दीपक श्रीवास्तव द्वारा श्रीरामचरितमानस की इस प्रकार की व्याख्या सामाजिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है तथा इसमें लोगों की भागीदारी बढ़नी चाहिए। 

कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री अरुण नायक ने कहा कि श्री अरविन्द सोसाइटी समाज की आध्यात्मिक प्रगति में निरन्तर कई वर्षों कार्य कर रही है तथा भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों हेतु कृतसंकल्प है। कार्यक्रम में शैली शर्मा, कवि अंकित चहल, कवि पंकज, डॉ यतीन्द्र कुलश्रेष्ठ, श्री के सी श्रीवास्तव, अंजलि समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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