हमारा राष्ट्र पर्व -प्रधान है। वसुधैव कुटुम्बकम की महान भावना को हृदय में धारण किये हमने प्रत्येक मत, पंथ, सम्प्रदाय की भावनाओं को उचित सम्मान दिया है। हम कभी तलवारों के दम पर या आर्थिक प्रलोभन के आधार पर पंथ परिवर्तन के पक्षधर नहीं रहे। धर्म जीवन की गति है तथा यही समाज मे मर्यादा एवं स्वतंत्रता में सामंजस्य बनाकर रखता है। अतः धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ स्वयं में पाशविक प्रवृत्तियों को अंगीकार करना है।
क्रिसमस समेत अनेक पर्वों पर परिवार एवं मित्रों के साथ खुशियां मनाना आज के एकाकी जीवन के लिए वरदान हो सकता है तथा इसे समाज को स्वीकार करना चाहिए। किन्तु बच्चों का मन अत्यन्त कोमल होता है तथा बचपन में पड़े संस्कार स्थायी होते हैं। अतः बच्चों के लिए सेंटा द्वारा उपहारों की कामना उनमें बचपन से ही लालची प्रवृत्तियों के विकसित होने की शुरुआत कर सकता है। यह बात छोटी भले ही प्रतीत होती हो, किंतु मुफ्त में कुछ भी पाने की प्रवृत्ति ही आगे चलकर समाज को बाजारवाद में उलझा देती है। इन्ही प्रलोभनों की आड़ में अनेक अयोग्य राजनेता मुफ्त सुविधाओं के प्रलोभन की आड़ में राजनीति के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो जाते हैं जिसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है।
क्रिसमस ट्री की सजावट बहुत अच्छी लगती है किंतु इन कृत्रिम वृक्षों पर जगमगाती नकली लाइटों की सजावट से ऊर्जा की बर्बादी के साथ-साथ अनावश्यक प्लास्टिक कचरा इत्यादि इकट्ठा हो जाता है जो पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा नहीं है। बड़े स्तर पर नित सजाए जाने वाले मॉल इत्यादि इसी का वृहद रूप हो सकते हैं जो चाहे कितने भी भव्य दिखें किन्तु वे जीवन शैली में भौतिक दिखावे को ही बढ़ावा देते हैं और जब इनसे व्यक्ति बोर हो जाता है तब वह उन्हीं प्राकृतिक स्थानों की ओर मुड़कर देखता है जिन्हें वह विकास की अंधी दौड़ में पीछे छोड़ आया है। आइए जीवनदायी वृक्षों को क्रिसमस ट्री मानकर उनके जलाभिषेक द्वारा अपना एवं समाज का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करें।
मेरा निवेदन है कि इस शुभ अवसर पर बच्चों को उनके नैतिक आदर्शों वाली यथार्थपरक कहानियों से जोड़ा जाए जिससे उनके अन्दर अच्छे-बुरे की समझ के साथ संघर्ष, परिश्रम का आदर्श विकसित हो सके जिससे वे बेहतर समाज के महत्वपूर्ण घटक बन सकें।
- दीपक श्रीवास्तव
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