भाषा सिर्फ माध्यम है । वहीं ज्ञान का स्थान बहुत उच्च है । ज्ञान का विलोम अज्ञान है । पाठ्य पुस्तकों में उपलब्ध जानकारियां अभ्यास द्वारा साधी जा सकती हैं किंतु वह विद्या है ज्ञान नहीं । भारतीय वेदांत में इसावास्योपनिषद के अनुसार विद्या के विपरीत अविद्या तत्व है । ज्ञान अनुभव की चीज है । उसकी अभिव्यक्ति हेतु विभिन्न माध्यम हो सकते है जिनमें भाषा भी है लिपि भी है, श्रव्य भी है, द्रश्य भी है, मौन भी है, विरोध भी है, सहयोग भी है, रंजना भी है, अभिव्यंजना भी है ।
जो हमारी प्रमुख भाषा है हमारा मस्तिष्क भी उसी को जानता समझता है अतः अभिव्यक्ति सहज हो जाती है किंतु किसी अन्य भाषा में की जाने वाली अभिव्यक्ति हेतु भले ही जबान सहज हो किंतु मस्तिष्क को उसे ग्रहण करने के लिये अपनी मूल भाषा में अनुवाद करना पड़ता है फिर उसका उत्तर देता है तत्पश्चात मस्तिष्क उसे सम्वादित भाषा में अनुवाद करता है तब जाकर हम अपने कंठ से उस भाषा में बात कर पाते हैं । यही कारण है कि अन्य किसी भी भाषा में हमारी सहजता प्रभावित होती है चाहे हमारे लिये अंग्रेजी या अमेरिकी अथवा अन्य किसी भी देश के नागरिकों के लिये हिन्दी ।
- दीपक श्रीवास्तव
जो हमारी प्रमुख भाषा है हमारा मस्तिष्क भी उसी को जानता समझता है अतः अभिव्यक्ति सहज हो जाती है किंतु किसी अन्य भाषा में की जाने वाली अभिव्यक्ति हेतु भले ही जबान सहज हो किंतु मस्तिष्क को उसे ग्रहण करने के लिये अपनी मूल भाषा में अनुवाद करना पड़ता है फिर उसका उत्तर देता है तत्पश्चात मस्तिष्क उसे सम्वादित भाषा में अनुवाद करता है तब जाकर हम अपने कंठ से उस भाषा में बात कर पाते हैं । यही कारण है कि अन्य किसी भी भाषा में हमारी सहजता प्रभावित होती है चाहे हमारे लिये अंग्रेजी या अमेरिकी अथवा अन्य किसी भी देश के नागरिकों के लिये हिन्दी ।
- दीपक श्रीवास्तव
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