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Thursday, April 5, 2018

--- बुद्धिजीवी या अधजल गगरी ---

आपकी दृष्टि में बुद्धिजीवी वर्ग में कौन आते हैं ।  मैंने अपने अनुभव से यही समझा है कि जो अपने अधकचरे ज्ञान के बलबूते पर स्वयं को सबसे बेहतर सिद्ध करने का प्रयास करे वही आज के दौर का तथाकथित बुद्धिजीवी है । 

यदि आज यदि हम सभ्यता एवं संस्कृति से निरन्तर दूर होते जा रहे हैं तो उसके पीछे इन तथाकथित बुद्धिजीवियो के योगदान को नकारा नहीं जा सकता ।  ये उसी वर्ग से हैं जो राम, कृष्ण, शिव जैसे संस्कृति के आधारस्तम्भों पर शायद पूरे दिन बहस कर सकते हैं किंतु हमारे पौराणिक ग्रंथ इनके बारे में क्या कहते हैं इन्हें तनिक भी भान नहीं होता क्योंकि हम पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं ।  घरों में श्रीरामचरितमानस अवश्य उपस्थित रहता हैं किंतु उसकी उपस्थिति केवल भौतिक रूप से ही होती है । 

ज्ञान का न होना लज्जा की बात नहीं है । लेकिन अधकचरा ज्ञान केवल स्वयं के लिये ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये आत्मघाती होता है । इसका सबसे निराशाजनक पहलू यह है कि यदि संस्कृति से सम्बंधित परिचर्चा हो रही हो तो वहां या तो ऐसे विद्वान उपस्थित होते हैं जिन्होंने संस्कृति को अंतरमन में आत्मसात किया है या ऐसी जनता है जिनमें साक्षरता अत्यंत कम है ।  बुद्धिजीवी वर्ग ऐसे स्थानों पर या तो नहीं जाते या केवल उपस्थिति दर्ज कराने हेतु कुछ समय के लिये दिखाई दे जाते हैं ।

सूरसागर के अनुसार गोपियां ज्ञानी नहीं थीं अतः बिना अपनी बुद्धि का प्रयोग किये श्रीकृष्ण की भक्ति को ही जीवन का आधार मानती थीं उन्हें उधव के ज्ञान में भले ही रुचि नहीं थी किंतु उनका सम्मान किया किंतु अपना आधार श्रीकृष्ण को ही माना । यह सार्थकता की ओर की गति थी ।  किंतु आज राजनीति की गलाकाट प्रतियोगिता ने इतने भ्रम पैदा किये हैं कि देश में अराजकता धीरे धीरे पांव पसार रही है ।  जो जनता भोली भाली है उसे बहला फुसला कर अपने स्वार्थ के लिये उपयोग करते हैं और जनता श्रीकृष्ण की तरह उनपर भरोसा कर लेती है जबकि उनमें कृष्ण का चरित्र लेशमात्र भी नहीं है ।  इस प्रकार राजनैतिक समीकरण बदल जाते हैं और बुद्धिजीवी वर्ग केवल सही-ग़लत की चर्चा में ही उलझकर रह जाता है ।

- दीपक श्रीवास्तव

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