नारी किसी भी घर परिवार की ऐसी महत्वपूर्ण कड़ी है जिसमे नैसर्गिक रूप से मर्यादायें एवं संस्कृति तथा सभ्यता समाहित होती है । यदि घर की मान मर्यादा की बात भर भी हो तो मस्तिष्क में उभरने वाला प्रथम दृश्य ही घर की बहू-बेटियों का ही आता है जो सीधे सीधे इस ओर संकेत करता है कन्या घर की संस्कृति है, घर की परम्परा है, घर की पहचान है । वही पुरुष घर का आवरण है। जहाँ नारी मर्यादा है वही पुरुष स्वतंत्रता का प्रतीक है । मर्यादा तथा स्वतंत्रता के मध्य सन्तुलन ही एक सुन्दर एवम् प्रगतिशील समाज की रचना करने में सक्षम है ।
यदि हम विष्णु तथा शिव के स्वरूप को देखें तो वहाँ भी हमें यही संतुलन दिखाई देता है । विष्णु जहां मर्यादा के मापदंड स्थापित करते हैं वही शिव का शाश्वत स्वरूप उन्ही मापदंडों का उपहास करते दिखाई देते हैं । क्योंकि मर्यादायें परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार निर्मित होती है । समय के साथ इनमें परिवर्तन आवश्यक होता है । समय की गति के साथ जब परम्परायें रूढ़ियां बनने लगें तब उनका विध्वंस आवश्यक हो जाता है । यही सन्तुलन की परकाष्ठा है ।
युगों युगों से समाज की रचना इसी सन्तुलन पर आधारित रही है । समय एवं परिस्थितियों के आधार पर नारी ने अपने कार्यक्षेत्र में परिवर्तन किया है तथा समाज की रक्षा की है चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या युद्ध के क्षेत्र में, हर जगह उसने मर्यादा के नये मापदंड स्थापित किये हैं परन्तु दुर्भाग्य वश इनमें से कुछ परम्परायें रूढ़ियां बनी जिसके ध्वंस के लिये पुरुषों को आना पड़ा ।
नारी को ईश्वर ने ऐसा सुन्दर उपहार दिया है जिससे वह प्रत्येक स्थान पर सम्-विषम प्रकृति के लोगों को भी आसानी से स्वीकार कर पाती है तथा उनके मध्य भी सन्तुलन स्थापित करने में सक्षम है । यही कारण है कि नारी दो परिवारों को जोड़ने का कार्य अत्यन्त सफ़लता एवम् सहजता से कर लेती है । यही कारण है कि नारी हर युग में पूजित रही है, पूजित है तथा पूजित रहेगी । जो भी शक्ति इस सत्य को अस्वीकार करती है या उपहास करती है उसे नष्ट होने से विश्व की कोई भी शक्ति नही रोक सकती ।
-दीपक श्रीवास्तव
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