आंखें आन्तरिक सुन्दरता देखने में सक्षम हैं क्योंकि व्यक्ति को तीन नेत्रों का वरदान प्राप्त है । शिव के त्रिनेत्र का भी यही स्वरूप है । तब तक पूर्णता नहीं है जब तक केवल बाह्य अथवा आंतरिक नेत्र खुले हैं । जब तक बाहर की दो आँखें बंद है तब तक भौतिकता का सुख नहीं और जब तक आंतरिक नेत्र बंद हैं तब तक शांति नहीं । इन दोनों का सन्तुलन ही आनंद है ।
सर्वजगत शिवरूप ही है । त्रिनेत्र, त्रिशूल, त्रिलोक उन्ही के हैं ।
शिवोहम का भाव मनुष्य को प्रत्येक विकार, सुख दुख , राग अनुराग इत्यादि से मुक्त करके उसकी आंतरिक सत्ता को स्वयं से जोड़ता है ।
-दीपक श्रीवास्तव
सर्वजगत शिवरूप ही है । त्रिनेत्र, त्रिशूल, त्रिलोक उन्ही के हैं ।
शिवोहम का भाव मनुष्य को प्रत्येक विकार, सुख दुख , राग अनुराग इत्यादि से मुक्त करके उसकी आंतरिक सत्ता को स्वयं से जोड़ता है ।
-दीपक श्रीवास्तव