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Thursday, December 31, 2009
Saturday, November 28, 2009
अनगिनत जीवन अचेतन भोग लिप्सा में समाये,
सत्य से अनभिज्ञ रह निज संस्कृति न जान पाये।
भोग संस्कृति त्याग हमको स्वत्व पीड़ा है मिटाना;
लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!
द्वेषमय अविरल पवन में मार्ग से जो भटक आए,
पथ प्रकाश कुसुम सुधा हरि अंश को न देख पाये।
मेट मृगतृष्णा हमें मनुजत्व उनकों है बताना;
लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!
कंटकों की मार में भी जो विजय के गीत गाये,
मद, गरल, दनुजत्व कंचन लोभ जिस पर चढ़ न पाये।
राष्ट्र दीपक बन उसे ही घोर तम में पथ दिखाना;
लक्ष्य दुर्गम, घन निशा में मार्ग हमको है बनाना!!
--दीपक श्रीवास्तव
Friday, November 27, 2009
दर्शन को हैं नैन पियासे!
कंठ तुम्हारे ही गुन गाते!!
जीवन धन्य बना दो माते!!!
माता हम नादान बड़े थे,
पाप की गठरी लिए खड़े थे.
शरण तिहारे आए अब तो,
नैनो से आंसू छलकाते.
जीवन धन्य बना दो माते!!!
शायद सुख में भूल गए थे,
आपनो से भी रूठ गए थे.
भूल हुई, पर बालक तुमसे
करुना और दया ही पाते.
जीवन धन्य बना दो माते!!!
--दीपक श्रीवास्तव
सांच तिहारो नाम ओ दाता,
जग झूठा ये झूठा नाता!!
सुंदर तन पर रीझ न प्राणी,
धन वैभव मिथ्या अभिमानी.
भज ले प्रभु का नाम ही सांचा,
जग झूठा ये झूठा नाता!!
पल में आशा बने निराशा,
निकट सरोवर फ़िर भी प्यासा.
मिटे कभी न लोभ पिपासा,
जग झूठा ये झूठा नाता!!
कंचन काया साथ न जाए,
क्यों बंधन में फंसता जाए.
नाम प्रभु का ही संग जाता,
जग झूठा ये झूठा नाता!!
--दीपक श्रीवास्तव
Muralia Baaje Jamuna teer
दरस दो श्याम, भयो मन अधीर!!
मुरलिया बाजे जमुना तीर!!!
रोम रोम ये श्याम पुकारे,
तुम बिन जीवन कौन उबारे.
स्वीकारो जसुमति के प्यारे
सही न जाए पीर!!
मुरलिया बाजे जमुना तीर!!!
भक्तों के वत्सल गोपाला,
गिरधर नागर, मुरली वाला.
जीवन तुम्हरे बिन नंदलाला,
ज्यूँ नदिया बिन नीर!!
मुरलिया बाजे जमुना तीर!!!
--दीपक श्रीवास्तव
Thursday, November 26, 2009
सरस्वती माँ स्तुति
बुद्धि-दायिनी माँ ज्ञान दो!!!!!
शारदा तेरी शरण में,
आए हैं बालक तुम्हारे.
ब्रम्ह-वादिनी माँ ज्ञान दो!!!!!
विद्या-दायिनी माँ तुम्ही हो,
धरा में अज्ञान- क्यों माँ??
हंस-वाहिनी माँ ज्ञान दो!!!!!
शील-साहस दो हृदय में,
हम बनें मानव धरा में.
वीणा-वादिनी माँ ज्ञान दो!!!!!
--दीपक श्रीवास्तव
Monday, November 2, 2009
Kya Rukna Baadhaaon Me
जीवन के बे-रोक सफर में,
कुछ कांटे कुछ फूल सही;
अगर मिले न गाड़ी घोड़े,
तो रस्ते की धूल सही;
चलना तेरा काम है राही,
चलता चल इन राहों में;
जीवन पथ का सार यही है,
क्या रुकना बाधाओं में।
--दीपक श्रीवास्तव
Niz-ko-Jaan
हे-नर-शाशवत-अमर-चिरंतन;
निज-को-जान-भगवती-नंदन;
द्वार-खोल-अंतस-के-प्यारे;
विजय-राह-करता-अभिनन्दन;
--दीपक श्रीवास्तव
Friday, October 2, 2009
Maa Durga Stuti
सत्या-नन्द-स्वरूपिणी.
भद्रकाली, कालरात्रि,
चंड-मुंड-विनाशिनी;
देवी-ज्ञाना, सर्व-विद्या
बुद्धि, रपि त्वम् बुद्धिदा,
त्वम् त्रि-नेत्रा, अग्नि-ज्वाला
घोर-रूपा, बल-प्रदा
सर्व-शास्त्रमयी अनंता
सर्व-असुर-विनाशिनी.
भद्रकाली, काल-रात्रि,
चंड-मुंड-विनाशिनी;
विष्णु-माया, बहुल-प्रेमा,
शाम्भवी माहेश्वरी.
ब्रम्ह-वादिनी, चंद्र-घंटा,
भाविनी परमेश्वरी
सर्व-मन्त्रमयी सती,
सर्व-दानव-घातिनी.
भद्रकाली, काल-रात्रि,
चंड-मुंड-विनाशिनी;
--दीपक श्रीवास्तव