माँ कहती है तुम हो एक,
फिर क्यों तेरे रूप अनेक?
हम तुमको क्या कहें बताओ |
राम, कृष्ण या अल्ला नेक ||१||
कोई पूरब को मुंह करता,
कोई पश्चिम को ही धरता |
चाहे पूजा या नमाज हो,
ध्यान तुम्हारा ही तो करता ||२||
क्यों हैं तेरे इतने रूप?
दुनिया तो है अँधा कूप |
जात-धर्म की पग-पग हिंसा,
यही जगत का हुआ स्वरुप ||३||
माँ कहती सब तेरी माया,
अलग-अलग रखकर के काया |
जीवन का आदर्श बताया,
मूरख इन्सां समझ न पाया ||४||
--दीपक श्रीवास्तव
4 comments:
natural expression :)
nice
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