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Thursday, February 11, 2010

लाल चुनर पहनाना

जाग उठी तरुणाई फिर से नव इतिहास बनाना,
प्यासी भारत माँ को है फिर लाल चुनर पहनाना।

वन-वन भटके राणा लेकर मातृभूमि का बाना,
मस्तक नहीं झुकाया चाहे पड़ा घास ही खाना।
आज समय की मांग यही है,
प्यास धरा की जाग रही है,
है स्वर्णिम इतिहास वही हमको फिर से दोहराना।
लाल चुनर पहनाना।।

इसी भूमि के लिए शिवाजी ने तलवार उठाया,
"हर-हर महादेव" का नारा फिर जग ने दोहराया,
बैरी की सीमा में जाकर,
अमर तिरंगा फिर लहराकर,
अपनी गौरव-गाथा का फिर से परचम फहराना।
लाल चुनर पहनाना।।

चूड़ी की झंकार, पिया की मेहंदी रास न आई,
हाथों में तलवारें लेकर लड़ी छबीली बाई,
केवल इतना ही है कहना,
इससे बड़ा न कोई गहना,
माँ लिए ही जीना माँ के लिए हमें मर जाना।
लाल चुनर पहनाना।।

--दीपक श्रीवास्तव

4 comments:

Vikram Pratap Singh said...
This comment has been removed by the author.
Vikram Pratap Singh said...
This comment has been removed by the author.
Vikram Pratap Singh said...

Bahut umda Srivastava Ji.Yakeenan Ek shabd shilpi hai aap

Mamta Swaroop Sharan said...

All ur posts have emotions, rhythm and great words. Very nice collection.