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Monday, February 1, 2010

तुम ही हो!!!

जिस पल में हो एहसास तेरा,

उस पल की आभा क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥



अंतर्मन में हो बसे हुए,

ये भाव नहीं ये तुम ही हो।

ये भाव न मुझसे शब्द हुए,

इन शब्दों में भी तुम ही हो।

जिनका उच्चारण नाम तेरा,

उन शब्दों का फिर क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥



भेष बदल छुप के आये,

आहट बोली ये तुम ही हो,

खुशियों के मेघ तभी छाये,

आँखें बोलीं ये तुम ही हो।

जिस जीवन में हो प्यार तेरा,

उस जीवन का फिर क्या कहना।

जिन गीतों में हो नाम तेरा,

उन गीतों का फिर क्या कहना॥


--दीपक श्रीवास्तव

1 comment:

Unknown said...

What to say about "तुम ही हो!!!".The title of this writ indicates that internal feeling is expressed in words as recitation.And hopefully this is called 'Poem' in the language of General Human Being.Keep it up...