हे माँ जग के स्वामी का संदेशा लेकर आया हूँ,
अपने संग उनके प्राणों की प्रिय अंगूठी लाया हूँ।।
माता लगते हैं अनाथ से जिन्हें त्रिलोकीनाथ कहें,
हे सीते कहकर विलापते, जो जग के सब पीर हरें।
मै तेरी सेवा में उनकी व्यथा बताने आया हूँ।।
अपने संग उनके प्राणों की प्रिय अंगूठी लाया हूँ।।
रहो सदा तुम अजर अमर ये माता का वरदान है,
पुत्र तुम्हारे हाथों में ही सृष्टि का कल्याण है,
धन्य हुआ मै माता जो सेवा का अवसर पाया हूँ।।
अपने संग उनके प्राणों की प्रिय अंगूठी लाया हूँ।।
माता का आशीष प्राप्त कर बागों के फल फूल दले,
लंका जार असुर संहारे, हनुमत प्रभु की ओर चले,
नाथ आपकी सेवा में माँ की चूड़ामणि लाया हूँ,
में सेवक माँ के चरणों का अमृत पीकर आया हूँ।।
हनुमत तेरे जैसा जग में कोई कभी नहीं होगा,
तेरे जैसा प्यारा मुझको कोई और नहीं होगा,
नाथ तुम्हारी भक्ति का गुणगान सदा ही गाया हूँ,
में सेवक माँ के चरणों का अमृत पीकर आया हूँ।।
--दीपक श्रीवास्तव
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