इस नयन में धार कैसी?
कर्म पथ में हार कैसी?
कंटकों को भी बहा दे,
अश्रु की हो धार ऐसी||
क्या सवेरा, रात क्या है?
नियति का आघात क्या है?
थक गए जो, रुक गए जो,
लक्ष्य की फिर बात क्या है?
अश्रु या मोती नयन के,
क्यों नियति पर है बहाना?
कल हमीं थे, आज हम है,
जूझना, है आजमाना|
राह को ही वर लिया तो
फिर नियति की मार कैसी?
कंटकों को भी बहा दे,
अश्रु की हो धार ऐसी||
--दीपक श्रीवास्तव
1 comment:
शाबाश , मंगलकामनाएं दीपक !
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